विधायक की अयोग्यता को लेकर गुरुवार को विधानमंडल में करीब ढाई घंटे तक सुनवाई चली। इस मौके पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) (Shivsena UBT) पक्ष और शिंदे गुट के वकीलों ने दलीलें पेश की। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष ने सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ कराने की मांग की। जबकि शिंदे गुट के वकील ने हर याचिका पर अलग से सुनवाई करने की मांग की। इन सभी घटनाओं पर सुनवाई जैसे जैसे आगे बढ़ रही है घाती विधायकों पर अपात्रता की तलवार लटक रही है। जिससे शिंदे गुट में तिलमिलाहट बढ़ गई है। ऐसी तीखी प्रतिक्रिया शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सांसद अनिल देसाई ने दी है। तीनों याचिकाओं पर गुरुवार को होने वाली सुनवाई पर विधानसभा अध्यक्ष 20 तारीख तक फैसला दे सकते हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
अनिल देसाई ने कहा कि इस मामले में सभी बिंदु पर हमारे वकील ने अपनी रखी हैं। हालांकि उनके पक्ष के वकील ने बहस या खंडन किए बिना प्रत्येक याचिका की अलग-अलग सुनवाई की मांग की। यह उनके द्वारा देरी कराने की नीति को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि जब कार्रवाई का कारण और घटना एक ही है तो अलग सुनवाई की मांग क्यों की जा रही है। इस घटना पर कानून के आधार पर हर पक्ष पर विचार कर बहस, प्रतिवाद किये जाने की उम्मीद है। लेकिन साफ दिख रहा है कि शिंदे गुट ऐसा किए बिना सिर्फ समय बर्बाद करने में रुचि ले रहा है।
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शिंदे गुट की ओर से की गई मांग कानूनई रूप से उचित नहीं है। चूंकि अयोग्यता की तलवार उनके सिर पर लटक रही है, इसलिए वे मामले को लंबा खींचने और समय बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वे इस तरह की गड़बड़ी कर रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। साथ ही विधानसभा अध्यक्ष को भी ऐसे गंभीर विषय पर ध्यान देना चाहिए। अध्यक्ष ने उनसे इस बारे में सवाल भी पूछे। हालाँकि फिर भी वे लोग समय खींच रहे थे। जिसे देखते हुए अध्यक्ष से इस पर ध्यान देने की मांग की गई और सभी मामलों पर उचित निर्णय जल्द से जल्द देने की अपील की। शिंदे गुट की देरी को अध्यक्ष ने भी संज्ञान में लिया है। उन्हें इसकी जानकारी है इसलिए उन्हें इस मामले पर जल्द सुनवाई कर फैसला देना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्याय में देरी न्याय न मिलने के समान है। इसे देखते हुए प्रदेश और देश के नागरिक इस पर जल्द फैसले की उम्मीद कर रहे हैं। अगर समय बर्बाद करने का इनका सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी पड़ेगी।
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