मुंबई।(Youth of Irshalwadi showed anger raigarh)रायगढ़ जिले खालापुर के इरशालवाड़ी गांव पूरी तरह से श्मशान में तब्दील हो गया है। 248 लोगों की जनसंख्या वाले इस गांव में भूस्खलन और लैंडस्लाइड के चलते अबतक मलबे में दबे 20 लोगों के शव को निकाला गया है जबकि 122 लोगों को बचाया जा सका है अभी भी 100 से अधिक लोगों के फंसे होने की संभावना जताई जा रही है। शुक्रवार सुबह से एनडीआरएफ ने बचाव कार्य शुरू किया है। इस घटना के बाद अब यहा के युवाओ मे आक्रोश देखने मिल रहा है। यहा के युवाओ ने खुलासा किया है कि गांव का पुनर्वसन के लिए पिछले आठ वर्षों से मांग कर रहे है लेकिन नहीं किया जा रहा है।मानसून के दौरान पहाड़ी के नीचे झोंपड़े बांध कर जान बचाने की कोशिश किए जाने पर झोंपड़ों को तोड़ते हुए आदिवासी जात के नाम पर धमकी देते हुए वापस इस गांव मे भेजा गया। जिसका नतीजा है की आज गांव के लोगों को जान देनी पड़ी है।
गांव के राजेन्द्र ठाकुर ने बताया कि रात साढ़े 10 बजे विस्फोट जैसी आवाज़ हुई । जोरदार गड़गड़ाहट की आवाज आई। मै सो रहा था मेरे बगल की दीवार को धक्का लगने पर उठ गया । तभी मुझे लगा कि दीवार मेरी ओर आने लगी है। बगल के कमरे मे मेरा भाई, भाभी और दो छोटे बच्चे अगले कमरे में सो रहे थे। मैं उनके पास दौड़ा, तभी नीचे रहने वाला मेरा एक चचेरा भाई चिल्लाने लगा। ऊपर से पत्थर गिर रहे हैं, भागो..भागो…”इसके बाद ही चारों तरफ से सिर्फ बचाने की आवाज आने लगी। सभी लोग दबे हुए थे । इस दौरान पहले गांव के हम युवकों ने लोगों को निकालने की कोशिश किए। इसके बाद एक युवक नीचे जाकर दूसरे गांव के लोगों को सूचना दिए। इधर दो-तीन चचेरे भाइयों को घर से बाहर खींच लिया।किसी तरह उन्होंने अपने दो-तीन साल के बच्चों को बाहर निकाल सके। इसके बाद गांव वाले ओर प्रशासन का मदद पहुचा वह भी काफी समय बाद।
आश्रम मे पढ़ने वाले युवक सिर्फ बचे
राजेन्द्र ने बताया कि हम सभी आदिवासी समुदाय से हैं। हमारे गांव की आबादी ढाई सौ लोगों की थी। आश्रम में छोटे-छोटे बच्चे हैं। कुल सात घर बचाये गये हैं रात को हम पहाड़ से नीचे आये। हम अपने गांव में अन्य रिश्तेदारों के यहां युवकों को बुला रहे थे। एक घर मे फोन कर रहे थे लेकिन उनके फोन लग नहीं रहे थे तब हमे ऐहसास हुआ की काफी लोग दबे हुए है बकरियां, बैल, मवेशी सब ख़त्म हो गए हैं। चाचा, दादा का पूरा परिवार खत्म हो गया| यहां एक छोटे बच्चे के माता-पिता, बड़ा भाई चला गया। हम सब एक साथ थे।
2015 से पुनर्वास की मांग
कुछ समय पहले मूसलाधार वर्षा हो रही थी। एक साल पहाड़ी के दूसरे तरफ से चट्टान गिरी थी। उसके बाद हमने पुनर्वास की मांग की। हमने 2015 में पुनर्वास की मांग कर रहे । पिछले साल भी हमने पहाड़ी के नीचे झोपड़ी बनायी थी| जिससे की मानसून के दौरान सुरक्षित रह सके। लेकिन उन झोपड़ियों को वन विभाग ने ध्वस्त कर दिया।गाव वालों को धमकियाँ मिलनी शुरू हो गईं। उन्हे उनके आदिवासी जात पर गाली दिया जाने लगा। उन्हे वापस पहाड़ी पर भेज दिया गया। ऐसा लगता है कि आदिवासी समाज जानवर हैं लोग सोचते हैं कि उन्हें जंगल में जानवरों की तरह रहना चाहिए। युवाओ द्वारा आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है।
समाज के युवाओ को नहीं मिल रही नौकरी
राजेन्द्र ने बताया कि हमारे आदिवासी गांव के 25 प्रतिशत युवा शिक्षित है । हम नौकरी के लिए प्रयास कर रहे थे लेकिन वे भी हमें नहीं जाने देते। सभी 11वीं, 12वीं, 13वीं, 15वीं पास कर चुके हैं। तीन लोग 15वीं पास कर चुके थे। लेकिन 15 वी पास तीनों इस दुर्घटना मे मारे गए है हमने पुनर्वास और रोजगार मांगा। नौकरी न भी मिलती तो भी काम चल जाता। यदि हमारा पुनर्वास किया गया होता, हम किसी भी कंपनी में नौकरी पाने में सक्षम होते ।लेकिन हमारे गांव का पुनर्वसन करने मे नजर अंदाज किया जा रहा है।
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