मुबई। घाती सरकार की नाकामियों के कारण मौजूदा समय में प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के साथ ही स्वास्थ्य विभाग खस्ताहाल से गुजर रहे हैं। आलम यह है कि अन्य गंभीर बीमारियों के साथ ही कुष्ठ रोगियों की संख्या में बेतहासा इलाफा हो रहा है। इस बीमारी की सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं हो रही है। दूसरी तरफ चंद्रपुर, गढ़चिरौली और नंदुरबार में अधिक संख्या में कुष्ठ रोगी मिल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में मिले कुल 83,281 मामलों में से 45041 यानी 54.13 फीसदी महिलाएं कुष्ठ रोग की शिकार हुई हैं, जबकि 38,200 यानी 46 फीसदी पुरुष मिले हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय हिंदुस्थान को कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलाने के लिए कई तरह के उपाय कर रहा है। इसमें स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान का भी समावेश है। इसके तहत कुष्ठ रोग के संबंध में समाज में फैली भ्रांतियों को भी दूर किए जाने की कोशिश की जा रही है। इसके तहत रैली और नुक्कड़ नाटक जैसे मार्गों का सहारा लिया जाता है। साथ ही छात्रों से भी लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मदद ली जाती है। लेकिन महाराष्ट्र में घाती सरकार की गलत नीतियों और स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यों के कारण बीमारी को कंट्रोंल करने में दिक्कतें आ रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस पर चिंताजनक जता रहे हैं। महाराष्ट्र में यह बीमारी सबसे ज्यादा विदर्भ के विशिष्ट ग्रामीण इलाकों में है। चिकित्सकों का कहना है कि सामाजिक कलंक, बीमारी को स्वीकार न करना और इलाज में देरी के कारण महिलाओं में कुष्ठ रोग के अधिक मामले देखे जा रहे हैं।
ऐसे फैलती है बीमारी
कुष्ठ रोग एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्री जीवाणु के कारण होता है। यह त्वचा, परिधीय तंत्रिकाओं, ऊपरी श्वसन पथ की श्लैष्मिक सतहों और आंखों को प्रभावित करता है। वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कुष्ठ रोग से ग्रस्त व्यक्ति यदि किसी के साथ लंबे समय तक रहता है और दूसरे की तौलियां, चादर आदि इस्तेमाल करता है तो इस रोग के फैलने का खतरा रहता है। वहीं कुष्ठ रोग उन्मूलन पर केंद्रीत करनेवाली व्यापक पहल के बावजूद बीमारी से जुड़ा गहरा भय इसमें बाधक बना हुआ है।
‘शून्य कुष्ठ रोग अभियान’
स्वास्थ्य सेवा, महाराष्ट्र की संयुक्त निदेशक (टीबी और कुष्ठ रोग) डॉ. सुनीता गोल्हित ने कहा कि शून्य कुष्ठ रोग अभियान गति पकड़ रहा है। यह अभियान लोगों में रोग का पता लगाने और उपचार के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस बीच घरेलू सर्वेक्षणों ने मामलों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बहरहाल मुंबई में भी बीमारी का जल्द पता लगाने के लिए मुंबई में स्क्रीनिंग पर जोर देने की जरूरत है।