मुंबई। पित्त नली में पथरी, सिकुड़न, रुकावट अथवा बंद होने की स्थिति में पित्त की समस्या उत्पन्न हो जाती है, जो बाद में पीलिया का कारण बनता है। ऐसे रोगियों की पित्त नलिकाओं में एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैंक्रेटोग्राफी (ईआरसीपी) का उपयोग किया जाता है। हालांकि बच्चों में भी वयस्कों की तरह ही एक ही ट्यूब का उपयोग किया जाता है। लेकिन बच्चों में इसका उपयोग करना अक्सर मुश्किल भरा होता है। इसको ध्यान में रखते हुए मनपा प्रशासन ने अब नायर अस्पताल में पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप उपलब्ध कराने का फैसला किया है। इस सुविधा से डेढ़ साल से अधिक उम्र के बच्चों की पित्त नलिकाओं में आनेवाली रुकावटों को दूर करना आसान होगा। इसके साथ ही मनपा अस्पताल में इस तरह की सुविधा मनपा पित्त नलिकाओं के माध्यम से शरीर में उत्पन्न पित्त बहता रहता है। हालांकि, कई कारणों से पित्त नली में पथरी बन जाती है अथवा पित्त नली संकरी हो जाती है। ऐसे में पित्त नली से बाहर निकलता है, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैलने लगता है। परिणामस्वरूप पीलिया जैसी बीमारी हो जाती है। इस स्थिति में सर्जरी के साथ एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैंक्रेटोग्राफी (ईआरसीपी) का उपयोग किया जाता है। हालांकि पित्त नली पर सर्जरी रोगी के लिए जटिल और दर्दनाक होती है। इसलिए डॉक्टर ईआरसीपी उपयोग को प्राथमिकता देते हैं। इसका उपयोग वयस्कों के लिए किया जाता है। फिलहाल बच्चों के लिए कोई विशेष ट्यूब उपलब्ध नहीं है। इसलिए कुछ मामलों में डॉक्टरों द्वारा इसका उपयोग पांच साल से अधिक आयु के बच्चों पर किया जाता है। इससे पांच साल से कम उम्र के बच्चों का इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए अब नायर अस्पताल ने बच्चों के इलाज के लिए पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। इस तरह नायर अस्पताल पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप तकनीक का उपयोग करने वाला मुंबई का पहला अस्पताल होगा।
महंगा है पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप
पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप महंगा होने के कारण इस पर खर्च 50 हजार से ज्यादा आता है। मनपा अस्पताल में यह सुविधा शुरू होने से गरीब मरीजों को राहत मिलेगी, क्योंकि नायर अस्पताल में यह सर्जरी निशुल्क रहेगा।
इस तरह होता है इस्तेमाल
पीडियाट्रिक स्लिम डुओडेनोस्कोप मुंह के ट्यूब रास्ते अन्नप्रणाली के माध्यम शरीर में डाला जाता है। फिर ट्यूब को पेट और पित्ताशय में ले जाया जाता है। इसमें केवल कुछ घंटे लगते हैं। मरीजों को एक से दो दिन ही अस्पताल में रहना पड़ता है।
साल में आते हैं पांच से छह मरीज
गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. प्रवीण राठी ने कहा कि अस्पताल में हर साल इस तरह के पांच से छह मरीज आते हैं। फिलहाल यह तकनीक उपलब्ध होने के बाद मनपा के अन्य अस्पतालों में भी मरीजों का इलाज संभव हो सकेगा। साथ ही अब डेढ़ साल से अधिक उम्र के बच्चों की पित्त नली से पथरी निकालना या पित्त नली को चौड़ा करना संभव होगा। मनपा के अतिरिक्त आयुक्त डॉ. सुधाकर शिंदे और अस्पताल के डीन डॉ. सुधीर मेढेकर मार्गदर्शन में उपलब्ध कराई जा रही है।