नवी मुंबई। डॉक्टरों के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में समय से पहले जन्म की दर बढ़ रही है और गर्भधारण की बढ़ती उम्र भी इसका एक कारण है। जो माताएं अपने उम्र 40 या बाद में गर्भधारण करती हैं, उनमें समय से पहले जन्म का जोखिम अधिक होता है। प्रीमेच्योरिटी निर्दिष्ट अवधि (37 सप्ताह) से पहले बच्चे का जन्म है। इन बच्चों का विकास पर्याप्त नहीं होता है और इनका वजन कम होता है, इसलिए पहले कुछ दिनों में इन शिशुओं की बहुत अधिक देखभाल करना आवश्यक होता है।
पिछले कुछ वर्षों में करियर और शिक्षा में स्थिरता नहीं होने के कारण लड़कियों की शादी देर से हो रही है। नतीजतन, गर्भकालीन आयु भी बढ़ गई है। अब कुछ महिलाएं 35 की उम्र के बाद तो कुछ महिलाएं 40 की उम्र के बाद भी गर्भवती होने का फैसला करती हैं। इस उम्र में फर्टिलिटी कम हो जाती है। इसलिए गर्भवती होना बहुत मुश्किल है। एआरटी जैसी तकनीक की मदद से यह और भी संभव हो गया है। मेडिकवर हॉस्पिटल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. अनु विज बताती है कि देर से प्रेग्नेंसी की वजह से समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है, लेकिन लेट प्रेग्नेंसी के कारण समय से पहले जन्म सहित कई जटिलताएं हो सकती हैं।
खारघर स्थित मोदरहुड अस्पताल की सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ। सुरभि सिद्धार्थ ने बताया कि 35 वर्ष से ऊपर की माताओं में समय से पहले बच्चे होने की संभावना अधिक होती है। लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा, जो महिलाएं देर से गर्भधारण करती हैं, उन्हें गर्भाधान से पहले स्वास्थ्य समस्याएं जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और थायरॉयड की समस्याएं हो सकती हैं। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे श्वसन संबंधी समस्याएं, कम प्रतिरक्षा और तंत्रिका संबंधी विकार। ऐसे नवजात शिशुओं की एनआईसीयू में उचित देखभाल की जरूरत होती है।
बढ़ती उम्र के साथ प्रेग्नेंट होना भी काफी खतरनाक हो सकता है। इसका मां के साथ-साथ बच्चे पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। एक समय से पहले बच्चे को कमजोरी, चिंता के साथ श्वसन संकट, पीलिया हो सकता है। यह कम प्रतिरक्षा, तंत्रिका संबंधी विकार, सुनवाई हानि, हृदय की समस्याएं और कमजोर मांसपेशियां भी पैदा कर सकता है। इसलिए इन बच्चों का न केवल अस्पताल में बल्कि घर आने पर भी ध्यान रखने की जरूरत है। शिशु को घर ले जाते समय माताओं को डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए। शिशु को एलर्जी, संक्रमण और विभिन्न बीमारियों से दूर रखने और शिशु के विकास के लिए स्तनपान जरूरी होने की बात डॉ. नार्जोन मेश्राम ने दी।
चालीस के बाद गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप, प्रीक्लेम्पसिया, गर्भकालीन मधुमेह, थायरॉयड विकार, गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं और बच्चे में संरचनात्मक दोष, विकास प्रतिबंध और समय से पहले जन्म सहित जटिलताओं का खतरा होता है। ऐसे बच्चों को जन्म के बाद भी लंबे समय तक देखभाल की जरूरत होती है। फेफड़े, पाचन तंत्र, प्रतिरक्षा प्रणाली और समय से पहले बच्चों की त्वचा पूरी तरह से विकसित नहीं होने की जानकारी डॉ अनु विज ने दी। समय से पहले बच्चों को अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का अधिक खतरा होता है। इन शिशुओं के शारीरिक विकास और वृद्धि में कुछ समय लगता है। कुछ शिशुओं को लंबे समय तक पूरक ऑक्सीजन या ट्यूब फीडिंग पर रखने की आवश्यकता होती है। इसलिए, माता-पिता को इस बात की जानकारी होना आवश्यक है कि इस बच्चे की देखभाल कैसे की जाए।