मुंबई । कोरोना महामारी के कारण कामों की पद्धति में परिवर्तन होने से अनेक लोग “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं। इसके साथ ही ऑनलाइन डिलीवरी का प्रमाण बढ़ा है। स्कूल, कार्यालय में अब कैंटीन शुरू की गई हैं। जिसका फटका मुंबई के डब्बे वालों को लगा है। उनके रोजगार पर भारी संकट छा गया है। जिसके कारण उनकी संख्या यह भारी गिरावट आई है। शुरुआती दौर में पांच हजार डब्बे वाले थे। अब इनकी संख्या मात्र डेढ़ हजार रह गई है। डब्बे वालों की “मैनेजमेंट गुरु” इस नाम से विश्व भर में उनकी पहचान है। मुंबई के डब्बे वाले वर्तमान में रोजगार की कमी होने के कारण भारी संकट में हैं। 50 वर्षीय अशोक कुंभार यह अंधेरी (पूर्व) में अपने चार लोगों के साथ रहते हैं। पिछले 30 वर्षों से वे मुंबई में डब्बे पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उनकी पत्नी सहित दो बच्चे हैं। दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे हैं। कोरोना से पहले वे डब्बे पहुंचाने के काम से उन्हें ₹ 25000 महीना मिलता था। उससे वे अपना घर चलाते थे। परंतु कोरोना के बाद उनकी कमाई अब 12 से ₹15 हजार पर आ गई है।इसलिए उन्हें घर चलाना कठिन हो गया है। यही परिस्थिति अन्य डब्बे वालों की भी है।
दो पैसे अधिक मिले इसलिए पर्यायी काम
विश्वनाथ दिंडोरे यह 32 वर्षीय युवक डब्बे वाला पिछले 12 वर्षों से डब्बे पहुंचाने का काम कर रहा है। परंतु वर्तमान में कम आय होने के कारण अब समय के अनुसार लोडर का भी काम करता है। डब्बे वाले मेहनत अधिक कर रहे हैं परंतु उन्हें पैसे कम मिलता है। जिसके कारण उनकी आर्थिक गणित बिगड़ने लगी है। इसलिए अनेक डब्बे वाले गांव का रास्ता पकड़ लिए हैं। वहीं कई डब्बे वाले दो पैसा अधिक मिले, इसलिए पर्याय दूसरे काम करना पसंद किए हैं। इस दरमियान अपना डब्बा पहुंचाने का व्यवसाय और परंपरा को कायम रखने के लिए डब्बे वालों की संगठन और ट्रस्ट प्रयत्न कर रहा है।
डब्बे कमी हुए
कोरोना के पूर्व डब्बे वाले प्रतिदिन मुंबई में दो लाख डब्बे पहुंचाते थे। वर्तमान में उसके हिसाब से 40 से 50 हजार तक की गिरावट आई है।डब्बे में कमी होने से डब्बे वालों को मिलने वाली आय में भी कमी हुई है।