इस वर्ष गर्मी में बढ़ते तापमान ने लोगों बेहाल कर दिया है लेकिन इस गर्मी से ज्यादा तपिस महंगाई ने बढ़ाई है। गर्मी से लोगों के पसीने छूट रहे हैं तो महंगाई से आंसू आंखों से छलकने भर राह गए हैं। लोगों को महंगाई ने जो दर्द दिया है वह सहनशीलता को हदों के पर हैं। पेट्रालियम पदार्थों की कीमतों में एक महीने में लगभग 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि इतनी वृद्धि एक वर्ष में भी नहीं होती। इसके चलते देश की करोड़ों मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों के जिंदगी इन दिनों दिक्कतों में फंस गई है। रोजमर्रा की जरूरतों, खाने की वस्तुओं से लेकर उपभोक्ता सामान, कपड़े लत्ते, जूते चप्पल, प्रसाधन सामग्री, रसोई गैस से पेट्रोल डीजल तक की कीमतें आसमान छू रही है।
उद्योग धंधे ध्वस्त होने को मजबूर
आश्चर्य और मुशीबत दोनो यह है कि आमदनी और रोजगार के अवसर जस की तस ही हैं। पहले खस्ताहाल में जी रहे लोगों की हालत अब दर्दनाक होने लगी है। कोरोना में तो लोगों को 2 वर्ष ले लिए थे थाम रखा था लेकिन इस महंगाई ने तो एक दशक पीछे धकेल दिया है। कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था सांस लेने लगी थी, लेकिन महंगाई ने घरेलू अर्थव्यवस्था बिगाड़ कर उद्योग धंधे को फिर से ध्वस्त करने पर आमादा है।
महंगाई अपने रिकार्ड स्तर पर
यूक्रेन और रूस की लड़ाई को महंगाई में तेजी से वृद्धि के लिए एक वजह मानी जा सकती है, तो दूसरी वजह केंद्र की गलत नीतियां भी हैं। जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बिगड़ी अर्थव्यवस्था ने हमारे घर और बाजार की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। महंगाई दर पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 7 प्रतिशत के आंकड़े पार हो गई है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कोरोना की तीन लहरों के बाद उठने की कोशिश कर रही अर्थव्यवस्था एक बार फिर गोता खाने लग गई है।
रोजमर्रा की चीजें पहुंच से दूर
घर चलाने के लिए लगने वाली रोजमर्रा की वस्तुएं अब पहुंच से दूर होने लगी हैं। साल भर पहले जिस बजट में महीने भर घर चलता था अब उस रकम में सिर्फ दो तिहाई खरीदारी ही हो पा रही है। घर में साग- सब्जी, राशन, तेल-पानी, किराया, बच्चों के स्कूल फीस पर ही पूरी आमदनी खर्च हो रही है। महिलाएं अब घूम फिरने और बाहर खाने के शौक को मार रही हैं। अब लग्जरी लाइफ जीने वाले लोग अपने मन को दबाने लगे हैं, अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाने लगे हैं, ऐसे में अब पारिवारिक और मानसिक तनाव भी बढ़ने लगा है
नीतिनिर्माता भी मूक दर्शक
महंगाई पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार भी हाथ बांधे खड़ी है। केंद्र सरकार के नीतिनिर्माता मौन हैं तो रिजर्व बैंक भी इस महंगाई के मामले में मुख दर्शक बनी हुई है। सभी नीतिनिर्माता देश की अर्थव्यवस्था से लेकर घर के बिगड़े बजट तक को संभालने में लाचार नजर आ रहे हैं। रेपो दर हो या रिजर्व बैंक की अन्य दरों में उतार-चढ़ाव करने के बजाए आरबीआई के गवर्नर भी मुख दर्शक बने हुए है।
केंद्र के कानों में जून तक नहीं रेंगती
उधर महंगाई के लिए जिम्मेदार मानी जा रही केंद्र सरकार की गलती नीतियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार पर कांग्रेस लगातार हमले कर रही है। लेकिन ढीठ हो चुकी केंद्र की मोदी सरकार के कान में महंगाई को लेकर जूं तक नहीं रेंग रही है। महंगाई वृद्धि में दो अंकों के आंकड़े पार करने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका बदहाली से बदतर स्थिति में पहुंच गए हैं। लेकिन मोदी सरकार इससे भी सबक नहीं ले रही है।
घर तो घर उद्योग धंधे भी चौपट
पिछले 2 सालों में लघु और मध्यम उद्योग के लिए लगने वाले प्रमुख कच्चे माल के कीमतों में लग3 पंख से उत्पादन महंगा हो गया है। कॉटन के कच्चे में 100 फीसदी तो लोहे के कच्चेमाल 200 फीसदी महंगे हो गए हैं। भवन निर्माण वस्तुओं में तो अलग ही रिकार्ड बनाया है। सरकार एक्सपोर्ट के आंकड़े जाहिर कर खुद को बचाने की कोशिश कर रही है। जबकि माल ढुलाई का खर्च का वाहन करना कंपनियों को भारी पड़ रहा है। डाबर हो या एमएसएमई से जुड़े कंपनियां सभी की हालात बदत्तर होते जा रही है।
ऐसे रुकेगी महंगाई की रफ्तार
जानकारों की माने तो नीति निर्माताओं को अब फौरन हरकत में आना जरूरी है, रेपो दर हो या रिजर्व बैंक द्वारा कर्ज की दरों में उतार चढ़ाव, जल्द निर्णय लेने की जरूरत। केंद्र सरकार की ओर से तमाम तरह के करों में राहत देने की जरूरत। पेटोलिया पदार्थों के उत्पादन कर और अन्य कच्चे मालों के धुलाई पर कर को कम कर उड़ाती महंगाई के पर कतरे जा सकते हैं। अगर अभी नीतिनिर्माताओं ने कुछ कदम नहीं उठाए तो महंगाई और तेज होगी।
पिछले वर्ष को तुलना में महंगाई
अप्रैल 2021 अप्रैल 2022
रसोई गैस सिलेंडर 800 रुपये 950 रुपये
खाद्य तेल (लीटर) 80 -120 200 -220
सब्जियां (किलो) 60 से 80 100 से 120
ब्रांडेड दूध (लीटर) 55 60
ब्रेड (400 ग्राम) 30 34
पेट्रोल (लीटर) 90 120