नवी मुंबई। कक्षा 5वीं और 8वीं की वार्षिक परीक्षा में फेल हुए विद्यार्थियों को टेंशन लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्हें दो माह के भीतर एक और मौका दिया जा रहा है। यदि वे दूसरी बार की परीक्षा में 35 प्रतिशत अंक लाते हैं, तो उन्हें अगली कक्षा में भेज दिया जाएगा।
बता दें कि स्कूल शिक्षा विभाग ने विद्यालय की वार्षिक परीक्षा में फेल होने वाले कक्षा 5वीं और 8वीं के विद्यार्थियों को प्रमोट नहीं करने का निर्णय लिया है। इसके चलते बच्चों व अभिभावकों में चिंता की लहर दौड़ पड़ी है। फिलहाल यह चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि इसी फैसले के साथ ही यह भी निर्णय लिया गया है कि विद्यार्थी दो माह के भीतर दोबार परीक्षा दे सकते हैं। यदि वे विद्यालय द्वारा ली जाने वाली इस दूसरी परीक्षा में पास हो जाते हैं, तो उन्हें बिना किसी समस्या के उसी वर्ष अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाएगा।
शिक्षा का स्तर सुधरेगा
शिक्षा का अधिकार नियम के अनुसार अब तक कक्षा 8वीं तक के बच्चों को फेल होने के बावजूद भी अगली कक्षा में प्रमोट करने का नियम था। शिक्षाविदों के अनुसार इस नियम के चलते विद्यार्थियों व अभिभावकों में शिक्षा के प्रति गंभीरता बहुत कम हो गई थी। कुछ विद्यार्थी तो पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान नहीं देते थे। इससे विद्यार्थियों की शिक्षा स्तर गिरने लगा था। नौवीं कक्षा में पहुँचने के बाद भी कई बार विद्यार्थी बहुत कमजोर ही रहते थे। इस फैसले के चलते विद्यार्थी पढ़ाई में ध्यान देंगे और शिक्षा का स्तर सुधरेगा।
कहीं खुशी, कहीं गम
शिक्षा विभाग के इस फैसले के चलते कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल दिखाई दे रहा है। कुछ लोग इसे बच्चों के हक में लिया गया फैसला बता रहे हैं, तो कुछ लोग कह रहे हैं कि इससे बच्चों पर मानसिक दबाव बन सकता है। टार्गेट पब्लिकेशन डॉ. कल्पना गंगारमानी ने बताया कि एक विद्यार्थी के लिए 5वीं और 8वीं दोनों वर्ष नींव की भाँति होते हैं। यदि यह नींव मजबूत हुई तो इसके सहारे वे किसी भी परीक्षा का सामना पूरे आत्मविश्वास के साथ करते हुए सफलता प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा विभाग का यह निर्णय पूरी तरह सराहनीय है। शिक्षिका मेघना जाधव ने बताया कि शिक्षा विभाग द्वारा लिया गया यह फैसला बिलकुल उचित है। हालांकि इससे विद्यालय और शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी, लेकिन इससे विद्यार्थियों को बहुत लाभ मिलेगा। अभिभावक रमेश सिंह ने बताया कि सरकार के लिए गए इस फैसले के कारण बच्चों और अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाएगी। छोटे बच्चों पर परीक्षा का दबाव बढ़ जाएगा, जो उनकी मानसिक स्थिति के लिए ठीक नहीं होगा।