राज्य की निकाय संस्थाओं के लंबित चुनावी कार्यक्रम दो सप्ताह में घोषित करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट दिया है। इसके बाद से मुंबई , ठाणे , नवी मुंबई , मीरा भायंदर जैसे महामुंबई के शहरों में चुनावी हलचल तेज हो गई है। नेताओं में चुनावी दंगल में उतरने की खलबली मच गई है। लोगों को लग रहा था कि लगभग डेढ़ वर्ष तक यह चुनाव आगे खिंच गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सियासी संग्राम जल्द देखने को मिलेगा। इसके लिए चुनाव आयोग फिर से तैयारियों में जुट गया है।

सरकार ने किया मंथन
राज्य सरकार और चुनाव आयोग ने आज से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण करना शुरू कर दिया है। इसे लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में कल वर्षा बंगले में बैठक हुई। इस बैठक में संबंधित मंत्रियों के साथ मुख्य सचिव मनुकुमार श्रीवास्तव, महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी, ग्राम विकास व नगर विकास विभाग के अधिकारी शामिल थे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संबंध में चर्चा की। यह बैठक लगभग डेढ़ घंटे चली। कोर्ट के फैसले के अनुसार कानून में संशोधन किए जाने से पहले यानी 11 मार्च से पहले जो तैयारी की गई है, वहां से चुनाव आयोग को चुनाव की तैयारियों की शुरुआत करनी है।

राज्य सरकार के अधिकार बरकरार
दूसरी तरफ राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करके अपने अधिकारों को अबाधित रखा है। इसका असली अर्थ क्या है, इस पर डेढ़ घंटे बैठक में विचार विमर्श किया गया। जिन निकाय संस्थाओं का कार्यकाल 11 मार्च से पहले समाप्त हो गया है, उनके चुनाव पुराने कानून के तहत यानी चुनाव आयोग की तैयारियों के अनुसार और जिनका कार्यकाल आनेवाले समय में खत्म होगा, उनका चुनाव संशोधित कानून के तहत कराने का एक विकल्प बैठक में निकाला गया।
5 से 6 महीने लगेंगे तैयारी में
प्रभाग रचना, आरक्षण, मतदाता सूची, नामांकन पत्र भरने की तारीख आदि कामों के लिए 5 से 6 महीने की अवधि लग सकती है। लिहाजा दिवाली के बाद चुनावी बिगुल बजने के आसार हैं। दूसरी तरफ ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने के संबंध में कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए ट्रिपल टेस्ट को पार करने के लिए राज्य सरकार ने भी कमर कस ली है। इसके लिए कानूनी विशेषज्ञों की राय ली जा रही है।
मध्यप्रदेश के फैसले पर नजर
ओबीसी आरक्षण के लिए जरूरी ट्रिपल टेस्ट के लिए इम्पेरिकल डाटा सुप्रीम कोर्ट में किस कसौटी पर खरा उतरेगा और ओबीसी का पिछड़ापन कैसे सिद्ध होगा, साथ ही कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के संभ्रम को दूर करके कौन सी दिशा तय की जाए, इसके लिए कानून के विशेषज्ञों से सलाह लेने का फैसला बैठक में किया गया। इसीतरह मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आज क्या फैसला आएगा? इस पर राज्य सरकार का ध्यान होगा। मध्य प्रदेश का कानून पुराना और महाराष्ट्र के कानून में हाल में संशोधन किया गया है।