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HEALTH: कैंसर मतलब मौत! ८१ फ़ीसदी लोगों को कैंसर से लगता है डर, कैंसर से पीड़ित हैं ४१ फीसदी लोग

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मुंबई। कैंसर(Cancer) आज भी दुनिया के सामने एक जानलेवा समस्या है। कैंसर से हर साल हजारों लोगों की मौत होती है। जब कैंसर ने पहली बार दुनिया का सामना किया, तो यह धारणा थी कि धूम्रपान करने वालों या केवल तम्बाकू खाने वालों को ही कैंसर होता है। लेकिन धीरे-धीरे पेट का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और अन्य कैंसर दुनिया के सामने आने लगे और सच्चाई सामने आई कि कैंसर किसी को और किसी भी तरह से हो सकता है। उसी समय से कैंसर का डर ज्यादा होने लगा। इन सबके बीच मुंबई में ४,३५० लोगों पर किए गए हालिया अध्ययन में पता चला है कि ४९ फीसदी लोगों का मानना है कि कैंसर का मतलब ही मौत है। वहीं अध्ययन में सबसे डरावनी बात यह सामने आई है कि करीब ४१ फीसदी लोग कैंसर से पीड़ित मिले हैं। इसी तरह ८१ फीसदी लोगों में कैंसर का पता चलने का भय रहता है, जिस कारण वे परीक्षण कराने से कतराते हैं।

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उल्लेखनीय है कि कैंसर एक ऐसी खतरनाक और जानलेवा बीमारी है जिससे लड़ना बहुत मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक हिंदुस्थान में हर घंटे १५९ लोगों की मौत कैंसर से होती है। राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष २०२० में करीब १४ लाख लोगों की कैंसर से मौत हुई। कैंसर के मरीजों की संख्या में हर साल १२.८ फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मौजूदा समय में दुनिया के २० फीसदी कैंसर मरीज हिंदुस्थान में ही हैं। इस बीमारी के कारण हर साल ७५,००० लोगों की जान जाती है। वहीं कैंसर के प्रति लोगों के व्यवहार को समझने के लिए फोर्टिस अस्पताल का फोर्टिस कैंसर इंस्टीट्यूट मुंबईकरों तक पहुंच सर्वे किया। यह सर्वे कैंसर के विभिन्न निवारक और उपचारात्मक पहलुओं जैसे शीघ्र निदान, स्क्रीनिंग, बीमारी के बारे में जानकारी, महामारी के दौरान कैंसर रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियां, बीमा की आवश्यकता और सर्वोत्तम कैंसर देखभाल पर केंद्रित था। इस दौरान ४,३५० मुंबईकरों पर किए गए शोध के निष्कर्षों से पता चला कि अस्वास्थ्यकर जीवनशैली से कैंसर हो सकता है। साथ ही शुरुआती जांच के महत्व पर विश्वास जताया।

इस तरह निकला निष्कर्ष

८३ फीसदी लोगों ने बताया कि लंबे समय तक तम्बाकू का उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार और पारिवारिक इतिहास कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं। तीन फीसदी ने कैंसर के लिए पारिवारिक इतिहास बताया। ७८ फीसदी ने कहा कि अगर जल्दी पता चल जाए तो सभी तरह के कैंसर का इलाज किया जा सकता है। नौ फीसदी ने कहा कि कैंसर का इलाज नहीं किया जा सकता है, भले ही इसका निदान जल्दी हो जाए। ४९ फीसदी लोगों ने कहा कि कैंसर मृत्यु के समान है, जबकि ५१ फीसदी ने कहा कि समय पर निदान सहायक हो सकता है।

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समय पर निरीक्षण और निदान

८१ फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें बीमारी का पता चलने का डर लगता है। इसलिए उनके सामने समय पर बीमारी का पता लगने और उपचार से संबंधित एक बड़ी समस्या है। ७२ फीसदी लोगों का कहना है कि परिवार के इतिहास की परवाह किए बिना पुरुष और महिलाएं कैंसर स्क्रीनिंग को समान रूप से महत्व देते हैं। १८ फीसदी का कहना है कि समय पर निरीक्षण को उचित महत्व नहीं दिया। ९० फीसदी लोगों को पता था कि शुरुआती जांच और आत्म-परीक्षण से कैंसर का जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है। हालांकि सात फीसदी ने कहा कि समय पर जांच का कैंसर के निदान और उपचार में कोई फायदा नहीं हुआ। ८० फीसदी ने कहा कि ४० वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए कैंसर की जांच की जानी चाहिए। हालांकि १६ फीसदी ने कहा कि समय पर जांच तभी आवश्यक है जब आपका कैंसर का पारिवारिक इतिहास हो।

 

महामारी में कैंसर रोगियों के सामने रही सबसे बड़ी चुनौतियां

२१ फीसदी लोगों ने कहा कि महामारी में कैंसर के इलाज के दौरान स्वास्थ्य के मामले में वित्तीय प्रावधान और सुरक्षित यात्रा प्रमुख चुनौतियां थीं। १६ फीसदी लोगों को किसी भी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि टेली-हेल्थ, होम केयर और अन्य सेवाएं उनके दरवाजे पर उपलब्ध कराई गई थीं। १३ फीसदी ने मानसिक स्वास्थ्य को सबसे बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक अलगाव के साथ ही संक्रमण के डर ने चिंता और अवसाद को जन्म दिया। ११ फीसदी ने कोविड-19 से परिवार के सदस्य को खोने को अपनी सबसे बड़ी चुनौती बताया। नौ फीसदी ने प्रतिबंध या अपने चिकित्सक व देखभाल करने वाली टीम तक पहुंच की कमी को अपनी सबसे बड़ी चुनौती बताया।

६५ फीसदी में दोबारा कैंसर होने का भय

सर्वे में बताया गया है कि ६५ फीसदी का मानना है कि उपचार पूरा होने और कैंसर मुक्त होने बाद कैंसर कुछ वर्षों तक दोबारा हो सकता है, जबकि २६ फीसदी कैंसर की पुनरावृत्ति से अनभिज्ञ थे। ४८ फीसदी ने कहा कि टीकाकरण कुछ प्रकार के कैंसर को रोक सकता है। १६ फीसदी ने कहा कि कैंसर की रोकथाम में टीकाकरण की कोई भूमिका नहीं है और ३६ फीसदी को यह नहीं पता था कि कैंसर को रोकने के लिए कोई टीका मौजूद है।

कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत

२८ फीसदी लोगों ने कहा कि कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है और २६ फीसदी का कहना है कि इस बीमारी का इलाज सभी के लिए सस्ता होना चाहिए। १५ फीसदी ने कहा कि स्क्रीनिंग सुविधाओं को सभी भौगोलिक क्षेत्रों में विस्तारित किया जाना चाहिए। १२ फीसदी ने कहा कि कैंसर उपचार को और अधिक सुलभ बनाने के लिए टीयर-2 और 3 क्षेत्रों में कैंसर देखभाल के बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाना चाहिए। वहीं ११ फीसदी ने कहा कि मौजूदा कैंसर उपचार सुविधाओं में सुधार के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है, जबकि ८ फीसदी ने कहा कि तंबाकू के उपयोग कोMUMBAI : फ्रांसीसी और भारतीय नौसेना ने दिखाया अपने युद्ध कौशल का जलवा और अधिक विनियमित किया जाना चाहिए। ९७ फीसदी ने कहा कि जब कोई व्यक्ति कैंसर के उपचार से गुजर रहा होता है तो देखभाल की लागत एक बड़ी चुनौती होती है। ८३ फीसदी ने कहा कि कैंसर को नियमित स्वास्थ्य बीमा कवरेज के तहत कवर किया जाना चाहिए।

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सर्वे में शामिल डॉक्टरों ने क्या कहा

इस सर्वे का नेतृत्व करने वाले महाराष्ट्र के फोर्टिस अस्पताल के प्रमुख डॉ. एस. नारायणी ने कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्ष डॉक्टरों की इस सिफारिश का समर्थन करते हैं कि शुरुआती पहचान प्रारंभिक निदान और उपचार की कुंजी है। लेकिन बीमारी का डर लोगों को परीक्षण कराने से रोकता है, जिसके परिणामस्वरूप निदान में देरी होती है और उपचार की संभावना कम हो जाती है। अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. बोमन धाभर ने कहा कि देखभाल इस सर्वेक्षण का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सीनियर कंसल्टेंट मेडिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. सुरेख आडवाणी ने कहा कि कैंसर के दोबारा होने के पैटर्न को समझना जरूरी है। इलाज के बाद भी कुछ में कैंसर दोबारा हो सकता है। इस बारे में मरीजों को जागरूक किया जाना चाहिए। डॉ. प्रिया ईशपुन्या ने कहा कि सर्वेक्षण के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र के कई पहलू गायब हैं।

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