मुंबई। घाती सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों के लिए आपात स्थिति में छात्रों को चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए हाल ही में नया फरमान जारी किया है। इसके तरह जारी दिशा निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि स्कूलों को निकटवर्ती अस्पतालों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) करना करें, ताकि तत्काल आपात स्थिति में डॉक्टर की सुविधा मिल सके। साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि किसी बच्चे को तत्काल अस्पताल ले जाने की आवश्यकता हो, तो स्कूल के पास वाहन की सुविधा भी होनी चाहिए। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि महाराष्ट्र के सभी स्कूलों को वार्षिक स्वास्थ्य जांच और आपातकालीन प्राथमिक चिकित्सा जैसे सीपीआर के प्रशिक्षण के रूप में छात्रों के लिए तनाव-मुक्ति कार्यशालाएं आयोजित करने की आवश्यकता है। इसके लिए काउंसलर नियुक्त करने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि बच्चे स्कूलों में 6-7 घंटे बिताते हैं। ऐसे में घाती सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से कहा गया है कि ये दिशा-निर्देश स्कूलों को इस दौरान होने वाली किसी भी चिकित्सा आपात स्थिति के लिए तैयार रहने में मदद करने के लिए जारी किए गए हैं। इसके अनुसार स्कूलों द्वारा प्राथमिक उपचार की समयबद्धता और तैयारी किसी भी अप्रिय घटना को रोक सकती है। इसके अलावा प्राथमिक चिकित्सा किट की उपलब्धता, स्कूल में बीमारों के लिए कमरा, प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण कार्यशाला के साथ वार्षिक चिकित्सा जांच, दिशा-निर्देश सीपीआर और कृत्रिम श्वसन जैसे विशिष्ट प्रशिक्षण मॉड्यूल पर भी जोर दिया गया है। दूसरी ओर इसमें स्कूलों को पास के अस्पतालों में आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा इस संबंध में जारी शासनादेश में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रशिक्षक होना चाहिए। सभी चिकित्सा आपातकाल संबंधी दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। साथ ही कहा गया है कि ये दिशानिर्देश सभी प्रकार के स्कूलों पर लागू हैं, चाहे वे किसी भी बोर्ड से संबद्ध हों। इसमें स्कूल जाने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित निर्देश भी शामिल हैं।
हाई कोर्ट के निर्देश का है असर
ये दिशानिर्देश जुलाई 2024 में मुंबई उच्च न्यायालय के निर्देशों का असर हैं। उस समय कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आपात स्थिति में आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं और प्रक्रियाओं के संबंध में व्यापक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कांदिवली के एक कॉलेज की छात्रा की मां की याचिका पर फैसला सुनाया था। याचिका में बताया गया था कि छात्रा फरवरी 2016 में अपनी कक्षा में गिरने से उसका सिर बेंच से टकरा गया था। उसे व्हीलचेयर पर छठी मंजिल से नीचे लाया गया और पास के अस्पताल ले जाया गया। लेकिन अधिक रक्तस्राव के कारण उसकी मौत हो गई थी