Jo india think: कोलकाता के एक अस्पताल में हुए जघन्य कांड ( kolkata doctor rape and murder case) की गुत्थी अभी सुलझी नहीं है। पश्चिम बंगाल (west bengal kolkata rape case) की पुलिस को अक्षम ठहराकर मामला सीबीआई (CBI CRIME
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) को सौंप दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वत: संज्ञान लिया है। उधर देश भर के डॉक्टरों का विरोध-प्रदर्शन जारी है। वे सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। इस मांग के औचित्य पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए, लेकिन जिस तरह सारे मामले को राजनीति का हथियार बनाया जा रहा है उसे देखते हुए न्याय की मांग करने वालों की नीयत पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है। निस्संदेह मामला बहुत गंभीर है और बलात्कार का यह मुद्दा कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार एजेंसियों की अक्षमता को भी उजागर करने वाला है। उम्मीद ही की जा सकती है कि अपराधी शीघ्र ही पकड़ा जाएगा / पकड़े जाएंगे और मरीजों को अस्पतालों में समुचित चिकित्सा मिलेगी, डॉक्टर को बिना डरे अपना काम करने का माहौल मिलेगा। मरीजों और डॉक्टरों के प्रति हमारी व्यवस्था को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। senior journalist vishwanath sachdev article on kolkata case. Jo india think
इस मामले में न्याय मांगने वाले अपराधी/ अपराधियों को कड़े से कड़ा दंड, फांसी, दिये जाने की मांग कर रहे हैं। निश्चित रूप से अपराधी को ऐसा दंड मिलना ही चाहिए जो शेष समाज को यह चेतावनी देने वाला हो कि किसी भी सभ्य समाज में ऐसी नृशंसता को स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यहां इस बात को भी स्वीकार किया जाना चाहिए की कड़ी से कड़ी सजा का एक परिणाम यह भी निकल रहा है कि अपराधी सबूत को मिटाने के चक्कर में बलात्कार– के बाद हत्या का मार्ग अपना रहे हैं। दिल्ली की ‘निर्भया’ से लेकर कोलकाता की ‘निर्भया’ तक की यह श्रृंखला यही बता रही है कि मनुष्यता के खिलाफ किए जाने वाले इस अपराध– बलात्कार के दोषी सिर्फ कड़े कानूनों से नहीं डर रहे। जिस दिन कोलकाता के एक अस्पताल में यह जघन्य कांड हुआ, उसके बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे देश के अन्य हिस्सों में भी बलात्कार-हत्या की घटनाएं सामने आने लगीं। यह स्थिति निश्चित रूप से भयावह है। स्पष्ट दिख रहा है कि अपराधियों में कानून-व्यवस्था का डर नहीं रहा, कहीं न कहीं उन्हें लग रहा है कि कानून उनकी मनमानी को रोकने में सक्षम नहीं है। स्थिति की गंभीरता और भयावहता को कुछ आंकड़े उजागर कर सकते हैं।
नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) (national crime record bureau) की गणना के अनुसार हमारे देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में बलात्कार चौथा सबसे गंभीर अपराध है। प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में देश में बलात्कार के इक्कतीस हजार छह सौ सत्ततर (31,677) मामले दर्ज हुए थे, अर्थात रोज 86 मामले यानी हर घंटे चार। ज्ञातव्य है कि इसके पहले के दो वर्षों में यह संख्या कम थी– सन 2020 में 28,046 मामले और सन 2019 में 32,033 मामले। यह आंकड़े तो उन अपराधों के हैं जो थानों में दर्ज हुए। हकीकत यह है कि आज हमारे देश में कम से कम इतने ही मामले थानों में दर्ज नहीं होते! यह मानकर कि अपराधियों को सज़ा नहीं मिलेगी, पीड़ित पक्ष ‘पुलिस के चक्कर’ में पड़ते ही नहीं। साथ ही बलात्कार की शिकार महिलाएं और उनके परिवार वाले समाज के ‘डर’ से भी पुलिस के पास जाने में हिचकिचाते हैं। बलात्कार स्त्री पर किया गया जघन्य अपराध है, लेकिन हमारे यहां बलात्कार की शिकार महिलाओं को ही संदेह और नीची दृष्टि से देखा जाता है! आज मुख्य सवाल इस दृष्टि के बदलने का है। और यह काम सिर्फ कड़े कानून से नहीं होगा। बलात्कार करने वाले को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले, यह सब चाहते हैं, लेकिन यह बात कोई नहीं समझना चाहता कि आवश्यकता उस दृष्टि को बदलने की है जो महिला को एक वस्तु मात्र समझती है। अपराधी यह दृष्टि भी है। सज़ा इसे भी मिलनी चाहिए– इस दृष्टि को बदलने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए।
आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। कई क्षेत्रों में तो पुरुषों से कहीं आगे हैं वे। इसके बावजूद उन्हें कमजोर समझा-कहा जाता है। यह उसी सोच का परिणाम है जो अबला जीवन को ‘आंचल में दूध और पलकों में पानी’ से आगे नहीं देखना चाहता। इस सोच को बदलने की जरूरत है। नारी को पुरुष के सहारे की नहीं, बराबरी के सहयोग की आवश्यकता है और पुरुष को यह समझना होगा कि वह भी नारी के सहयोग के बिना अधूरा है। जितनी आवश्यकता नारी को पुरुष की है, उतनी ही आवश्यकता पुरुष को भी नारी की है। यह काम कानून को कड़ा बनाने से नहीं, समाज के सोच को बदलने से होगा। हम देख रहे हैं कि इस संदर्भ में कानून को कड़ा बनाना अपराध और अधिक जघन्य बना रहा है, उम्मीद करनी चाहिए कि कानून अपना काम करेगा और समाज का सोच भी बदलेगा। इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। लेकिन,आज आवश्यकता उस सोच को भी बदलने की है जो हमारे राजनेताओं को हर स्थिति का राजनीतिक लाभ उठाने का लालच देता है। यह सही है कि बलात्कार का यह वीभत्स कांड कोलकाता का है और पश्चिम बंगाल की सरकार का दायित्व है कि वह इस दिशा में ठोस कार्रवाई करे। लेकिन बलात्कार की समस्या किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है।
कोलकाता में तो बलात्कार के सबसे कम मामले दर्ज होते हैं। इस संदर्भ में राजस्थान का नाम सबसे पहले आता है। इसके बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। ताज़ा उदाहरण यह भी बताता है कि कोलकाता के इस कांड के दूसरे-तीसरे दिन ही उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसी ही घटनाएं घटीं। इस बारे में हमारे राजनीतिक दलों में जिस तरह का रवैया अपनाया है उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं उठाया जा सकता। इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है, इसलिए वहां जो हुआ उसके बारे में बीजेपी वाले चुप हैं। बंगाल में भाजपा का मुकाबला ममता की तृणमूल-कांग्रेस पार्टी से है इसलिए भाजपा वहां सरकार बदलने की मांग कर रही है। यह ग़लत प्रवृत्ति है। हर बात को राजनीतिक नफे-नुकसान की दृष्टि से देखकर हम आने वाले कल का विकसित भारत नहीं बना पायेंगे। यह बात हमारे राजनेताओं को समझनी होगी। तभी समाज का स्वास्थ्य सुधरेगा, तभी हमारा भारत विकसित होगा।
बलात्कार के किसी कांड को राजनीति का हथियार बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। बलात्कार और बलात्कारियों को किसी भी दृष्टि से छूट नहीं दी जा सकती, लेकिन इस बात को भी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि ऐसा अपराध करने वाला ही नहीं, ऐसे अपराध को सहने वाला समाज भी दोषी होता है।