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एक वोट की कीमत, 88 वर्षीय विट्ठल म्हात्रे ने आखिरी सांस तक निभाया लोकतंत्र का फर्ज

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मुंबई। चुनावों में मतदाता का योगदान कितना अहम होता है, इसका जीता-जागता उदाहरण पनवेल के विट्ठल हिरौ म्हात्रे ने पेश किया। 88 वर्षीय म्हात्रे ने अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना अपनी उम्मीदवार को वोट देने के लिए डॉक्टरों से विनती की और आखिरकार एम्बुलेंस से मतदान केंद्र पहुंचे। लेकिन वोट डालने के अगले ही दिन शुक्रवार को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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पनवेल के कोलखे गांव के निवासी विट्ठल म्हात्रे को चार दिन पहले दिल का हल्का दौरा पड़ा था और उन्हें सहस्रबुद्धे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को मतदान के दिन उन्होंने डॉक्टरों से आग्रह किया कि मेरा दोस्त का बेटा चुनाव में खड़ा है, और मैं आखिरी बार उसे वोट देना चाहता हूं।डॉक्टरों और परिवार ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने किसी की बात नहीं सुनी।

एम्बुलेंस से पहुंचे मतदान केंद्र

म्हात्रे की जिद के आगे परिवार को झुकना पड़ा, और उन्हें एम्बुलेंस से कोलखे गांव के मतदान केंद्र ले जाया गया। उन्होंने खुशी-खुशी वोट डाला और अपनी जिम्मेदारी निभाई। लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई। अगले दिन उन्हें दिल का दूसरा दौरा पड़ा और शुक्रवार को उनकी मृत्यु हो गई।विट्ठल म्हात्रे को शेकप के कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाते थे। वे पनवेल के पूर्व विधायक दत्तुशेठ पाटील और वरिष्ठ कार्यकर्ता शिवरामशेठ म्हात्रे के सहयोगी रहे। उनका परिवार जिसमें दो बेटे, पोते-पोतियां और परपोते शामिल हैं, उनकी पार्टी के प्रति इस अटूट समर्पण को देख कर भावुक है।कोलखे ग्राम पंचायत के सदस्य रोहन म्हात्रे ने कहा कि दादाजी ने अंतिम समय तक लोकतंत्र और पार्टी के प्रति अपनी वफादारी को बनाए रखा। उनका निधन हृदय विदारक है। शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार कोलखे गांव में किया गया।

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