जो इंडिया / मुंबई:
4 महीने में बाघों के लिए बना मौत का जंगल
धनंजय मुंडे द्वारा विधानसभा में पूछे गए तारांकित प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया गया कि इस साल के पहले चार महीनों में राज्य में 22 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 13 बाघों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई जबकि बिजली के करंट से 4, सड़क हादसों, रेलवे ट्रैक और कुएं में गिरकर 2 बाघ मारे गए। इसके अलावा शिकार का शिकार बने 3 बाघ और एक बाघ की मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका।
तेंदुओं की हालत भी दयनीय
इसी अवधि में 40 तेंदुओं की जान गई। इनमें से 8 तेंदुए प्राकृतिक कारणों से मरे, 20 सड़क, रेलवे और कुएं में दुर्घटनाओं में, जबकि 3 शिकारियों की गोलियों का शिकार बने। 8 तेंदुए किन कारणों से मरे, यह अब भी स्पष्ट नहीं है।
अन्य वन्यजीवों के लिए भी नहीं बची कोई जगह
चार महीनों में 61 अन्य वन्यजीवों की मौत भी दर्ज की गई। इनमें से 23 प्राकृतिक कारणों से, 4 करंट लगने से, 4 शिकार से, 24 सड़क हादसे, कुत्तों के हमले और कुएं में गिरने जैसे हादसों में मारे गए। 6 अन्य की मौत के कारण अब भी अज्ञात हैं।
इंसानों पर भी मंडरा रहा खतरा
इस दौरान 21 इंसान भी वन्यजीवों के हमले में मारे गए। विशेषज्ञों के अनुसार, जंगलों के सिकुड़ते दायरे और मानव बस्तियों के बीच बढ़ते संघर्ष से यह स्थिति और भयावह होती जा रही है।
3 साल में 707 वन्यजीव मारे गए
रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2022 से दिसंबर 2024 तक कुल 707 वन्यजीवों की मौत हो चुकी है। इनमें बाघ, तेंदुए, हिरण, सांभर और अन्य कई प्रजातियां शामिल हैं।
सवालों के घेरे में वन विभाग
जंगलों में लगातार हो रही इन मौतों ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने न तो वन्यजीव संरक्षण के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं और न ही मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए कोई ठोस योजना बनाई है।