मुंबई। टीबी (TB) छूत की बीमारी है, जिसके मरीज पूरे देश में मिलते हैं। हालांकि इस बीमारी से डायबिटीज (Diabetes) के मरीजों को सावधान होने की जरूरत है। यह रोग सीधे टीबी को न्यौता देता है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में रोगप्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में मधुमेह के रोगियों में टीबी (TB in patients with diabetes) होने का जोखिम दो से तीन गुना अधिक होता है। इसलिए जरूरी है कि डायबिटीज का इलाज समय पर किया जाए। एक जानकारी के अनुसार हिंदुस्थान में हर तीन में से एक व्यक्ति को पल्मोनरी टीबी ( Pulmonary TB) होती है।
उल्लेखनीय है कि डायबिटीज टीबी का कारण बनता है। ऐसे रोगियों को हाईरिक्स रोगी कहा जाता है। डायबिटीज के 20 प्रतिशत, जबकि एचआईवी संक्रमित मरीजों में 60 फीसदी टीबी के संक्रमण का खतरा रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य विभाग की बदौलत एचआईवी कुछ हद तक नियंत्रण में आ गया है। लेकिन हमारे रहन-सहन के कारण डायबिटीज बढ़ रहा है। इसने हिंदुस्थान को विश्व की डायबिटीज राजधानी बना दिया है। यह पता चला है कि डायबिटीज के रोगियों को टीबी और टीबी के रोगियों को डायबिटीज हो रहा है।
टीबी से हुई पांच लाख मौतें
साल 2021 में टीबी से पांच लाख हिंदुस्थानियों की मौत हुई है। मस्तिष्क का टीबी रोग सबसे गंभीर रूप है। टीबी को ठीक करने के लिए प्रारंभिक समय में पता चलना और उपचार महत्वपूर्ण हैं। समय पर इलाज से टीबी ठीक हो सकती है। अच्छा पौष्टिक भोजन और उच्च प्रोटीन आहार खाने से अच्छी प्रतिरक्षा बनती है, जो टीबी से लड़ने में मदद करती है। भीड़-भाड़ वाली जगहों पर टीबी के मरीजों को मास्क पहनना बेहद जरूरी है। दवा प्रतिरोध टीबी का एक गंभीर रूप है। टीबी को ठीक करने के लिए दवा संवेदनशीलता का शीघ्र पता लगाना महत्वपूर्ण है। टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं।
टीबी के कारण
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर कोली नामक जीवाणु के कारण होता है, जो वायुजनित रोग है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति जब खांसता, छींकता और बात करता है, तो टीबी के जीवाणु हवा में फैलकर पास के व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं। फेफड़े की टीबी का पता लगाने के लिए बलगम की जांच और छाती का एक्स-रे शुरुआती परीक्षण हैं। इसमें बलगम की जांच सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बहु और व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी टीबी का पता लगाने में मदद करता है। इसके अलावा रोग की जांच अल्ट्रासोनोग्राफी, सीटी स्कैन, बायोप्सी, ब्रोंकोस्कोपी करके भी होती हैं।
कोरोना के बाद बढ़ा टीबी का खतरा
कोरोना के बाद दूसरी बीमारियां भी हो रही हैं, जिसमें खांसी के मामलों में काफी वृद्धि हुई है। मनपा स्वास्थ्य विभाग टीबी के खतरा को ध्यान में रखते हुए लंबे समय से खांसी से जूझ रहे मरीजों की जांच कर रहा है। फिलहाल मनपा उन मरीजों की जांच पर विशेष फोकस कर रही है, जो कोरोना से संक्रमित हुए थे और इस समय वे लंबे समय से खांसी से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं मनपा खांसी से पीड़ित मरीजों से अस्पतालों में जाकर जांच कराने की अपील भी कर रही है।
मुंबई में बच्चे हो रहे टीबी के शिकार
मुंबई शहर ने पिछले पांच वर्षों में बच्चों में टीबी के सबसे अधिक मामले दर्ज किए हैं। आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 4,523, साल 2021 में 3,109 बच्चे, साल 2020 में 3,882, साल 2819 में 3,692 और साल 2018 में 2,178 बच्चे टीबी के शिकार हुए हैं। साल 2021 की तुलना में पिछले साल बच्चों में टीबी के मामलों में अधिक वृद्धि हुई हैं।