जो इंडिया / मुंबई
बीड जिले के मास्साजोग गांव के सरपंच संतोष देशमुख (Santosh Deshmukh, Sarpanch of Massajog village in Beed district) की हत्या के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल मच गई है। इस हत्या में धनंजय मुंडे के करीबी लोगों की संलिप्तता के आरोप के बाद विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है। इस बीच, मुंडे ने हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक से दूरी बना ली, जिससे अटकलें और तेज हो गई हैं कि वे जल्द ही इस्तीफा दे सकते हैं।
अजीत पवार का बयान: इस्तीफा देना या न देना मुंडे पर निर्भर
उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“इस्तीफा देना है या नहीं, यह धनंजय मुंडे को तय करना है।”
अजीत पवार के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। इससे पहले 2010 में अजीत पवार ने जलसंपदा मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, जब उन पर आरोप लगे थे। इसी संदर्भ में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का उदाहरण भी दिया, जिन्होंने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था।
संतोष देशमुख हत्याकांड: विरोधियों का बढ़ता दबाव
9 दिसंबर 2023 को सरपंच संतोष देशमुख की हत्या हुई थी। देशमुख ऊर्जा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अवैध वसूली के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। इस मामले में मुख्य आरोपी सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें वाल्मीकि कराड भी शामिल हैं, जो धनंजय मुंडे के करीबी बताए जा रहे हैं।
इस घटना के बाद विपक्ष हमलावर हो गया है और भाजपा के कुछ नेताओं ने भी धनंजय मुंडे से इस्तीफे की मांग की है। हालांकि, मुंडे ने खुद को इस मामले से अलग बताया है, लेकिन विरोधी दलों ने उनकी सफाई को स्वीकार नहीं किया और आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
कैबिनेट बैठक से मुंडे की अनुपस्थिति: संकेत या रणनीति?
इस राजनीतिक तनाव के बीच धनंजय मुंडे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में हिस्सा नहीं लिया। उनकी अनुपस्थिति ने अटकलों को और हवा दी है कि वे जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
क्या धनंजय मुंडे देंगे इस्तीफा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार पर लगातार बढ़ते दबाव और विरोधियों की आक्रामकता को देखते हुए धनंजय मुंडे के पास इस्तीफा देने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं बचा है। अगर विरोधी पक्ष आंदोलन तेज करता है तो सरकार को भी कोई सख्त कदम उठाना पड़ सकता है।
अब सबकी नजर इस पर है कि धनंजय मुंडे अपनी कुर्सी बचाने में सफल होते हैं या फिर विपक्ष की मांग के आगे झुकते हैं।