जो इंडिया / मुंबई। मुंबई की जीवनरेखा मानी जाने वाली लोकल ट्रेनों (local trains
डब्बेवालों ने रेलवे प्रशासन से अपील की है कि स्वचालित दरवाजों की योजना पर पुनर्विचार किया जाए और इसके बजाय सभी लोकल ट्रेनों को 15 डिब्बों में विस्तारित किया जाए, जिससे भीड़भाड़ कम हो और सभी को सुविधा मिले।
🚉 स्वचालित दरवाजे बनाम डब्बेवालों की दिक्कत
हाल ही में मुंब्रा में पांच यात्रियों की लोकल ट्रेन से गिरकर मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद रेलवे बोर्ड और राज्य सरकार ने सभी लोकल ट्रेनों में स्वचालित दरवाजे लगाने की घोषणा की थी।
हालांकि, इस योजना को लेकर न केवल यात्रियों बल्कि अब डब्बेवाला संगठन ने भी विरोध जताया है।
डब्बेवालों का कहना है कि स्वचालित दरवाजे उनके लिए परेशानी का सबब बनेंगे। पीक आवर्स (सुबह 10 से 11:30 व दोपहर 2:30 से 4 बजे) में टिफिन लोड और अनलोड करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जिससे न केवल उनकी सेवा बाधित होगी बल्कि यात्रियों को भी असुविधा होगी।
🧳 मुंबई डब्बेवालों की अहमियत
मुंबई में हर दिन करीब 1200 डब्बेवाले हज़ारों नौकरीपेशा लोगों तक घर का बना खाना पहुंचाते हैं।
450 मध्य रेलवे और 750 पश्चिम रेलवे पर कार्यरत हैं।
यह प्रणाली विश्व प्रसिद्ध है और इसे फॉर्ब्स से लेकर आईआईएम तक ने अध्ययन का विषय बनाया है। ऐसे में इस व्यवस्था को तकनीकी फैसलों से प्रभावित करना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
📣 प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया
डब्बेवाला संगठन के प्रवक्ता विष्णु काळडोके ने कहा:
> “हमें ट्रेनों में चढ़ने और टिफिन पहुंचाने के लिए कुछ ही सेकंड मिलते हैं। अगर दरवाजे स्वचालित हो गए, तो हम समय से पहले टिफिन नहीं पहुंचा पाएंगे। इससे हमारे काम पर सीधा असर पड़ेगा।”
वहीं, नागरिकों की राय भी दो भागों में बंटी नजर आ रही है।
अशोक कुंभार, कांदिवली निवासी बोले –
“डब्बेवालों में कई वरिष्ठ नागरिक हैं। उनके लिए दरवाजे खुलने और बंद होने का इंतजार करना मुश्किल होगा।”
विनोद शेटे, कांजूरमार्ग निवासी ने कहा –
“स्वचालित दरवाजों से सुरक्षा बढ़ेगी, लेकिन व्यवसायों पर असर पड़ेगा। पहले ही एसी लोकल्स की वजह से यात्रियों की संख्या कम हुई है।”