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सरकारी अस्पताल मुर्दों को नसीब नहीं कफन, परिजनो को करना पड़ रहा समस्याओ का सामना 

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मुंबई।  मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र ठाणे मे  सरकारी अस्पतालों मे में इन दिनों मुर्दों को कफन ही नसीब नहीं हो रहा है। मृतक के परिजन खुद ही कफन खरीदने को मजबूर है। जबकि अस्पताल प्रशासन इसे नि:शुल्क उपलब्ध करवाने का दावा करता आ रहा है। उसके बावजूद भी ऐसा हाल है। इतना ही नहीं सरकारी अस्पताल मे शवों ले जाने के लिए एम्बुलेंस भी नहीं उपलब्ध हो पा रही है।

ठाणे जिला अस्पताल से लगे अंबरनाथ अस्पताल मे इमरजेंसी में  किसी भी तरह के दुर्घटना ,बीमार, हार्ट अटैक या अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज गंभीर हालत में पहुंचते हैं,जहा मरीजों को  इलाज के लिए लाया जाता है।इससके साथ ही यहां से हालत गंभीर होने पर ठाणे ,जेजे या अन्य सरकारी अस्पतालों मे भेजे जाते है कई बार  यहां आने वाले मरीजों की मौत होने पर पोस्टमार्टम किया  जाता है। इनमें से कइयों के शवों के पोस्टमार्टम की जरूरत पड़ती है तो कईयों के शव बिना पोस्टमार्टम के ही परिजन को सौंप दिए जाते हैं।

कई महीनों  से कफन का टोटा

पड़ताल में सामने आया कि शव को ढकने के लिए कफन (सफेद कपड़े) का का कई दिनों से टोटा है। इस स्थिति में परिजन को दुख-दर्द के बीच कफन के लिए दौड़ाया जा रहा है। वे अस्पताल के बाहर से औने-पौने दाम में कपड़ा खरीदकर लाते हैं।इस का उदाहरण गुरुवार को देखने मिला। गुरुवार को कॉनदेश्वर के पास झरने मे डुबने से एक युवक की मौत हो गई थी। इस दौरान पोस्टमार्टम से पहले ही पोस्टमार्टम रूम के कर्मचारियों ने शव को बांधने के प्लास्टिक ओर कफन लाने के लिए कहा। जब अस्पताल से लेने की बात कही गई तो यह बताया कि यहा कफन उपलब्ध नहीं है। जिसके बाद मजबूरन अस्पताल से लगभग 5 किलोमीटर दूर जाकर लाना पड़ा। यह  कई दिनों से ऐसा ही हो रही है।इस बारे मे जब अस्पताल के अधिकारी ओर कर्मचारियों से पूछे जाने पर साफ कहा कि जब उपलब्ध ही नहीं तो कहा से देंगे।

निजी एम्बुलेंस के सहारे अस्पताल 

इस अस्पताल मे सिर्फ कफन ही नहीं तो एंबुलेंस की कमी है। इस अस्पताल मे ग्रामीण क्षेत्रों से सर्वाधिक मरीज या शव आते है। ऐसे मे उन्हे ले जाने के लिए अस्पताल मे एंबुलेंस नहीं होने के कारण निजी एम्बुलेंस का सहारा लेने को मजबूर है। इतना ही नहीं यह एम्बुलेंस दोगुना पैसा भी वसूल कर रहे है। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन मौन धारण किए हुए है।

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