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गोल्डन ह्यूमैनिटी अवार्ड 2022’से सम्मानित हुए मशहूर समाजसेवी ‘दिनेश बसंत निषाद’

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मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक खास आयोजन किया गया। अंधेरी के पेनिनसुला ग्रैंड होटल में इंसानियत को अहमियत देने वालों के लिए यह एक कार्यक्रम रखा गया। इस अवॉर्ड शो में समाज को प्रेम और इंसानियत का पैगाम देने वाले तमाम लोगों को उनके जज्बे के लिए सलाम किया गया। इसी कड़ी में मशहूर समाजसेवी दिनेश बसंत निषाद को भी गोल्डन ह्यूमैनिटी अवार्ड 2022 से नवाजा गया। उन्हें यह अवार्ड कई मशहूर हस्तियों की मौजूदगी में मशहूर संगीतकार दिलीप सेन के हाथों दिया गया।

मूल रूप से गोरखपुर के चार पानी गांव के रहने वाले दिनेश बसंत निषाद पिछले कई दशकों से मुंबई में आकर बसे हैं। खुद बेहद गरीब परिवार से आने वाले दिनेश निषाद ने मुंबई के फुटपाथ पर सो कर भी कई रातें ही नहीं बल्कि कई महीने और साल गुजारे हैं। खुले आसमान के नीचे सड़क पर सोने वाले दिनेश निषाद शायद इसीलिए गरीबी और गरीबों को बेहद करीब से जानते हैं।

कोरोना काल में जब मुंबई में हजारों लोग अचानक भूख और तंगहाली के चपेट में आ गए तो दिनेश निषाद ने अपनी तरफ से पूरी ताकत और जज्बे के साथ उनलोगों की सेवा की। कई परिवारों को राशन और दवाइयां बाटी। कई लोगों के घर लौटने की व्यवस्था की। भूखे लोगों के लिए खाने के पैकेट की व्यवस्था की। खैर यह तो बात रही कोरोना काल की लेकिन इससे पहले और इसके बाद भी दिनेश बसंत निषाद ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

दिनेश के करीबी बताते हैं की दिनेश
निषाद हर साल अपने गांव में गरीब लड़कियों की शादी का खर्च खुद उठाते हैं। अब तक कई लड़कियों की शादी चार पानी के इस लाल ने अपने खर्चे पर करवाई है। गोल्डन ह्यूमैनिटी अवार्ड से सम्मानित होने के बाद दिनेश निषाद काफी भावुक नजर आए। उन्होंने कहां “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे लोगों की सेवा और मदद करने के लिए इस तरह से सम्मान मिलेगा”।

दिनेश कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ अपना काम किया परमपिता परमेश्वर ने उन्हें जो कुछ भी दिया है वह उसमें से अपने गरीब भाइयों को थोड़ा सा देने में बिल्कुल किसी तरह का कोई संकोच नहीं करते। दिनेश निषाद का सपना है की गोरखपुर में उनके गांव और आसपास के तमाम गांव के छात्रों के लिए एक बढ़िया कॉलेज और हॉस्टल बनवा सके, ताकि आसपास के गरीब परिवारों के बच्चे भी पढ़ लिखकर आगे बढ़ सकें !

हालांकि इसकी शुरुआत हो चुकी है माना जा रहा है कि कुछ ही सालों में उनका यह सपना भी पूरा हो जाएगा। आज हमारे समाज को ऐसे सपूतों की बेहद ज़रूरत है जो ज़रूत मंदों के लिए सहारा बन सकें ।

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