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Tiger deaths in India: जंगल में सन्नाटा: 6 महीने में 107 बाघों की मौत

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जो इंडिया / मुंबई: 

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जंगल का राजा अब जंगलों में नहीं, बल्कि सरकारी आंकड़ों में कैद होकर रह गया है। आधा साल भी पूरा नहीं हुआ और देश के अलग–अलग जंगलों से बाघों की 107 मौतों की मनहूस ख़बरें आ चुकी हैं। इनमें से अकेले महाराष्ट्र में 28 बाघों की जान चली गई, जिससे महाराष्ट्र पूरे देश में मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर आ गया।

मध्य प्रदेश, जिसे ‘टाइगर स्टेट’ कहा जाता है, ने इस सूची में भी पहला स्थान हासिल किया है, जहां 29 बाघों ने दम तोड़ दिया। कर्नाटक और असम में 10–10, केरल में 9, उत्तराखंड में 7 और उत्तर प्रदेश में 4 बाघों की मौतें दर्ज की गईं।

भारत दुनिया के 75% बाघों का घर है। हर गणना में इनकी संख्या बढ़ने के दावे किए जाते हैं। पिछली गणना में इनकी संख्या 3682 से बढ़कर 3925 तक बताई गई थी। लेकिन जब हर साल 100 से ज्यादा बाघ मर जाते हैं और प्रशासन उन्हें “प्राकृतिक मौत” बताकर फाइल बंद कर देता है, तो यह देश के वन्यजीव संरक्षण के खोखलेपन को उजागर करता है।

मौत के पीछे क्या हैं असली वजहें?

वन विभाग के सूत्र मानते हैं कि इन मौतों के पीछे सिर्फ प्राकृतिक कारण नहीं हैं। कई बाघों का शिकार किया जाता है, कुछ को ज़हर देकर मार डाला जाता है। मानव–वन्यजीव संघर्ष में कई बाघ मारे जाते हैं। अक्सर कई दिनों बाद इनका सड़ा–गला शव मिलता है जिससे असली वजह का पता नहीं चलता।

सिस्टम की नाकामी

बाघों के संरक्षण के लिए करोड़ों का बजट हर साल मंजूर होता है, मगर न तो जंगलों में पर्याप्त गश्त होती है, न समय पर बचाव टीमें सक्रिय होती हैं। मॉनिटरिंग सिस्टम लगभग नाकाम है और पारदर्शिता का नामोनिशान नहीं।

 

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