मुंबई। भारत में आज लोगों के बीच अस्थमा एक सामान्य बीमारी बन गई है। देश में इस बीमारी से पीड़ित बड़ी संख्या में मरीज अपनी जान गवां रहे हैं। यह जानलेवा बीमारी अब बच्चों को भी अपने आगोश में ले रही है, जो स्वास्थ्य प्रणाली को चिंतित करने लगी है। बता दें कि अस्थमा रोगियों में सीने का दर्द, खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसी आम शिकायतें होती है।
उल्लेखनीय है कि मई महीने के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान लोगों में बीमारी के प्रति जन जागरण पैदा करने का भी काम जाता है। वहीं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि विश्व में बीमारियों से होने वाली लोगों की मौत के 10 कारणों में से अस्थमा पहले स्थान पर है। यह बीमारी ने विश्व के असंख्य लोगों को मौत की नींद सुला रहा है।
पर्यावरण असंतुलन बीमारी को बढ़ावा देने का मुख्य कारण
विशेषज्ञों की मानें तो पर्यावरण में बना असंतुलन बीमारी को बढ़ावा देने का मुख्य कारण है। इसके चलते अस्थमा रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इस बीमारी की घातकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व में प्रति 20 में से एक व्यक्ति को इस बीमारी ने जकड़ रखा है। एक आंकड़े के मुताबिक विश्व में अस्थमा से 30 करोड़ से अधिक लोग ग्रसित हैं।
जानकारी के अभाव में बढ़ता है अस्थमा
बता दें कि मानव शरीर के फेफड़े से संबंधित यह पुरानी बीमारी है। अस्थमा होने पर श्वसन मार्ग में सूजन आ जाती है, जिसके चलते व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। हिंदुस्थान में इस बीमारी की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में 6 फीसदी से ज्यादा बच्चे और 2 फीसदी से ज्यादा बुजुर्ग इस बीमारी से ग्रसित हैं। ऐसे मामलों में जानकारी का अभाव या असामयिक उपचार रोग के बढ़ने और मृत्यु का मुख्य कारण है।
छोटे बच्चों की भी हो रही मौत
छोटे बच्चों में अस्थमा के लक्षण जब तक समझ में आते हैं, तब तक बीमारी उनमें गंभीर रूप ले लेता है। इस स्थिति में पहुंचने के बाद बच्चों में लगातार खांसी की शिकायत दिखाई देने लगती है जो रात में और बढ़ जाती है। सांस लेते समय नाक से घरघराहट के आवाज आने लगते हैं। इतना ही नहीं सीने में जकड़न के साथ ही बच्चों में जल्दी थकान और कमजोरी महसूस होने लगता है। ज्यादातर बच्चों में ये लक्षण पांच साल की उम्र के बाद दिखाई देते हैं। एलर्जी भी इस बीमारी का एक प्रमुख कारण है। ऐसी स्थिति में बच्चों को बिना देर किए चिकित्सकों को दिखाया जाना चाहिए।