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Odisha train accident: ओडिशा रेल हादसा:सुरक्षा के नाम पर हो रहा खिलवाड़, वार्निंग सिस्टम से बच सकती थी यात्रियों की जिंदगी

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अभी भी हजारों ट्रेनों में नही लगे है एंटी कोलेजन डिवाइस

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मुंबई। ओडिशा के बालेश्वर(Baleshwar)में हुई ट्रेन दुर्घटना में अब तक 280 लोगों की मौत हो गई है जब की एक हजार से अधिक लोग घायल हैं। इस हादसे के बाद से लगातार ट्रेन की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। इस हादसे से रेलवे की लापरवाही सामने आई है जिन ट्रेनों का हादसा हुआ है उसमे एंटी कोलेजन डिवाइस लगा ही नहीं था। इन दोनों ट्रेन में यह डिवाइस लगा होता तो दुर्घटना से बचने के साथ ही यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी ।यह डिवाइस अभी भी देश भर के हजारो ट्रेनों में लगाए बिना दौड़ाए जाने का खुलासा हुआ है।
भारतीय रेलवे मानवीय भूल से होने वाले रेल हादसों पर लगाम लगाने के लिए एंटी कोलेजन डिवाइस ट्रेनों में लगा रही है। दरअसल एंटी कोलेजन डिवाइस ऐसा वार्निंग सिस्टम है जो एक ही ट्रैक पर ट्रेनों के आमने-सामने आने पर डिवाइस तुरंत एक्टिव हो जाता है और इंजन में लगा अलार्म बजने लगता है। इससे ट्रेन को रोककर हादसों को टाला जा सकता है रिपोर्ट के अनुसार करीब 65 ट्रेनों में एंटी कोलेजन डिवाइस लगाया जा चुका है हो सकता है इससे ज्यादा ट्रेनों में वार्निंग सिस्टम लगा हो क्योंकि इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं है बताया जाता है कि एंटी कोलेजन डिवाइस तेज रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों में सबसे पहले लगाया जा रहा है।

हादसे वाली ट्रेन में नहीं लगा था एंटी कोलेजन डिवाइस

ओडिशा में जिस कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के पटरी से उतरने और एक मालगाड़ी के टकराने से 280 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 900 से ज्यादा घायल हुए उसमें एंटी कोलेजन डिवाइस लगा या नहीं। रेल मंत्रालय के तरफ से शनिवार सुबह जारी बयान के अनुसार जिस रूट पर एक्सीडेंट हुआ है वहा एंटी कोलेजन डिवाइस यानी “कवच” नहीं लगा था अगर कवच लगा होता तो शायद सैकड़ों लोगों की जिंदगी को बचाया जा सकता था।

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कैसे काम करता है एंटी कोलेजन डिवाइस
रेलवे के जानकर समीर झवेरी ने बताया कि नई प्रणाली के हिस्से के रूप में रेलवे पटरियों, रेलवे पटरियों पर सिग्नलिंग सिस्टम और ट्रेनों के इंजनों को रेडियो फ्रीक्वेंसी उपकरणों के साथ स्थापित किया जाता है जो वास्तविक समय के आधार पर लगातार संकेत भेजते हैं कि ट्रैक किस पर चल रहा है कोई बाधा नहीं है। उपकरण लोकोमोटिव के आगे के संकेतों को लगातार रिले करते हैं, जिससे लोको पायलटों के लिए कम दृश्यता में, विशेष रूप से घने कोहरे के दौरान उपयोगी हो जाता है। फिलहाल कवच अल्ट्रा-हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो तरंगों का उपयोग करता है, लेकिन भारतीय रेलवे इसे 4जी लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (एलटीई) तकनीक के अनुकूल बनाने और वैश्विक बाजारों के लिए उत्पाद विकसित करने के लिए काम कर रहा है।अधिकारियों ने कहा था कि यह नई प्रणाली ट्रेनों को सिग्नल भेजने में भी बहुत अधिक सटीक है और तेज है क्योंकि यह सुरक्षा उपायों को लागू करने के साथ-साथ वास्तविक समय के आधार पर काम करती है।

आठ वर्षो से एटीआर रिपोर्ट को कर रहे है नजर अंदाज

एक्टिविस्ट समीर झवेरी ने बताया कि रेलवे दुर्घटनाओं को देखते हुए मिनिस्ट्री रेलवे बोर्ड के तरफ से 2013 से लेकर अब तक 28 एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) रिपोर्ट दी गई है।लेकिन इन रिपोर्ट पर रेलवे सुरक्षा आयुक्त द्वारा किसी भी तरह से कार्रवाई नहीं की गई है।इसके मांग करता हूं कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4 के तहत पिछले 10 वर्षों में भारतीय रेल अधिनियम की धारा 114 के तहत तैयार की गई ट्रेन दुर्घटनाओं की जांच रिपोर्ट को भारतीय रेलवे की वेबसाइट पर रेलवे सुरक्षा आयुक्त और रेलवे सुरक्षा आयुक्त और की गई कार्रवाई का विवरण डाला जाए।

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