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Mother’s Day – 2023: मिलिए धारावी में रहने वाली 80 लड़कियों की मां से

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दुनिया में मशहूर धारावी(Asia’s largest slum) वैसे तो गरीबी, भुखमरी और मलिन बस्ती के रूप में ज्यादा जाना है। लेकिन दूसरी तरफ छोटे-छोटे कुटीर उद्योग (Dharavi is Small and Medium business hub) के साथ यहां रहने वाले लोगों में मानवता की मिसाल उससे ज्यादा देखने को मिलती है। मदर्स डे (Mother’s Day – 

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2023)के अवसर पर जब जोइंडिया (joindia.co.in) की टीम ने धारावी में फेरी लगाई तो उसे ऐसी कई माताएं मिली जो खुद ही नौकरी, धंधा कर आने बच्चों का पालन पोषण कर रही है। तो कुछ ऐसी भी मिली जो देश के लिए मिसाल हैं। ऐसी ही एक मां से हम आपको मिलाते हैं। दिखने में तो यह आम मां ही है, यह 80 लड़कियों की मां है। इस मां के पास सिर्फ लड़कियां हैं वे भी सभी अनाथ, इनमे से कई तो पढ़ लिखकर अपने पैर पर खड़ी भी हो गई है।

एशिया के सबसे बड़ा स्लम धारावी के 60 फीट रोड पर शरणम नाम से शेल्टर होम है इसको चलाने वाली शारदा निर्मल अब उम्रदराज हो गई है। यहां रहकर वे मौजूदा समय मे करीब 25 अनाथ बच्चियों का पालन पोषण कर रही है। इन बच्चियों को एज्यूकेशन देने और आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा शारदा निर्मल ने उठा रखा है। शारदा को ये बच्चियां मां कह कर पुकारती हैं। शारदा ने 2000 से अब तक करीब 80 अनाथ बच्चियों की परवरिश की है। इसमें से 16 लड़कियों ने शरणम शेल्टर होम में रहते हुए डिग्री लेने तक की पढ़ाई पूरी की और आज स्वाभिमान के साथ अनाथ होने के बावजूद अपने पैरों पर खड़ी हैं। दरअसल शारदा निर्मल कम्युनिटी आउटरीच प्रोग्राम (सीओआरपी) की प्रोजेक्ट मैनेजर हैं और उनके जीवन का मकसद अनाथ बच्चियों को मां का दुलार व प्यार देना है।

 

कैसे बनीं इतने लड़कियों की मां

वे बताती हैं कि जब वे स्कूल में थीं तब से उनके मन में था कि वे बड़ी होकर लड़कियों के जीवन स्तर को सुधारने और उन्हें शिक्षा के लिए कुछ करेंगी। उन्होंने कहा, “मैंने अपनी स्कूल लाइफ में देखा कि लड़कियों को पढ़ाई के लिए परिवार के लोग ज्यादा मदद नहीं करते थे” बहुत सी लड़कियां पढ़ाई में अच्छी होने के बावजूद आठवीं-नौंवीं के बाद किसी न किसी वजह से पढ़ाई छोड़ देती थी। लड़की 13 साल की हो गई, तो उसे घर की जिम्मेदारी दे दी जाती थी। यह सब देखने के बाद मैंने ठान लिया कि बड़ी होकर मैं लड़कियों की मदद करूंगी। लड़कियों को भी पढ़ने लिखने और आगे बढ़ने का इतना ही मौका मिलना चाहिए जितना लड़को को मिलता है। मैंने अपनी पढ़ाई के वक्त इसी वजह से टिचर बनने का भी इरादा बनाया।

जोइंडिया मदर्स डे स्पेसल

आसपास में उस समय 10 वी पढ़ने वाली मैं अकेली लड़की थी।

मैं कर्नाटक में जब मैं दसवीं क्लास में पहुंची तो मैंने पाया कि मेरी सहेलियां पढ़ाई छोड़ चुकी थी। मैं उस वक्त अपने पड़ोस और एरिया में अकेली लड़की थी, जो 10 वीं क्लास की पढ़ाई कर रही थी। लड़कियां पढ़ लिख कर क्या करेंगी ? लड़कियां तो पराया धन हैं। उन्हें शादी कर एक दिन माता-पिता के घर से ससुराल जाना है। लड़कियों को तो घर काम करना है। घर संभालना है। बच्चे पैदा करना है। यह समाज की सोच थी। लड़कियों को आगे बढ़ने की उस वक्त प्रेरणा नहीं दी जाती थी। जबकि बहुत सारी लड़कियां आगे पढ़ना चाहती थीं, परंतु घर वालों द्वारा मदद नहीं करने की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।” उन्होंने का कहा कि शुरुआती दौर में लड़कियों को एज्यूकेट करना और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देना ही मेरा मकसद था। एक मां की तरह मैं नहीं सोच रही थी।

ऐसे बदल गया जीवन का ध्येय

मैंने वर्ष 2000 में मुंबई के धारावी इलाके में शरणम शेल्टर होम शुरू किया। लेकिन जब मैं शेल्टर होम चला रही थी, तब मेरे जीवन में एक पांच साल की छोटी बच्ची आई। इस बच्ची के माता-पिता दोनों टीबी की बीमारी से गुजर गये थे। सारे बच्चे मुझे दीदी बुलाते थे। वह पहली और अकेली बच्ची थी। जिसने एक दिन मुझे कहा कि दीदी मैं आपको मां कह कर पुकारना चाहती है। इस नन्हीं बच्ची की बात मेरे दिल को छू गई। मैंने महसूस किया कि वह बच्ची अनाथ होने की वजह से कहीं न कहीं मां की ममता और स्नेह की तलाश में है। उसे मुझमे अपनी मां नजर आने लगी। मेरे जीवन में जब यह घटना घटी तब मैं पहले से ही एक बच्चे की मां थी। इसके बाद मैं एक और बच्चे की मां बनीं, तो मुझे बच्चे के जीवन में मां का होना कितना अहम है। इसका एहसास हुआ। और मैंने अपने दोनो बच्चों को समझाया कि शेल्टर होम में रहने वाले बच्चियां अनाथ हैं। इस लिए तुमें शेल्टर होम में रहने वाली सभी बच्चियों को अपनी बहन मानना होगा और उनके साथ अच्छा व्यवहार करना होगा। मेरी बातों को मेरे बच्चों ने स्वीकार किया और इसका सकारात्मक परिणाम यह रहा है कि जब हम फल या कोई भी चीज शेल्टर होम में लाते, तो वे सबसे पहले गिनते की सभी के लिए है या नहीं।

मेरा बेटा अपनी टीचर को बताता कि उसकी 30 बहनें हैं।

मेरा तीन साल का बेटा जब केजी में पढ़ रहा था, तब वह अक्सर अपनी टिचर को बताता कि उसकी कुल 30 बहनें हैं। इस बात से हैरान टिचर ने एक दिन मुझे स्कूल बुलाया और पूछा कि बच्चा हमेशा 30 बहनें होने की बात क्यों कहता है? ऐसा कैसे संभव हो सकता है? तब मैंने टिचर को बताया कि मेरा बच्चा हमारे द्वारा चलाये जाने वाले शरणम शेल्टर होम में रहता है। वहां कुल 30 बच्चियां साथ में रहती हैं।

सासु मां को बुरा लगा था, लेकिन बाद में…

शारदा निर्मल बताती हैं कि जब उन्होंने अपने बच्चों को यह परिवरिश देना शुरू किया, तो बच्चों को तो नहीं परंतु उनकी सासु मां को काफी बुरा लगा। उन्हें लगा कि मैं अनाथ बच्चों को अपने सगे बच्चों से ज्यादा प्यार कर रही हूं। कई बार उन्होंने इसको लेकर ताना भी मारा। परंतु उन्होंने अपनी सासु मां को समझा कि शेल्टर होम में रहने वाली बच्चियों के माता-पिता पहले की इस दुनिया में नहीं है और ऐसे में यदि मैंने उन्हें मां का प्यार नहीं दिया, तो बहुत संभव है कि वे अंदर से टूट जायेंगी। इसलिए उन्हें एक परिवार का एहसास कराना और मजबूत आधार देना जरूरी है।

मां बच्चों में अद्भुत शक्ति का एहसास कराती है।

हर बच्चे की जिंदगी में मां सबसे अहम और बड़ा रोल निभाती है। यदि मां का सपोर्ट बच्चे को है, तो वे खुद में एक अद्भूत शक्ति का अहसास करते हैं। अगर बच्चे को मां का प्यार और सपोर्ट मिल रहा है, तो अंदर से मजबूत होते हैं और आगे बढ़ने का सपना देखना शुरू करते हैं। मां का प्यार मिलने पर बच्चे को लगता है कि उसके साथ कोई है, जो उसे हर मुश्किल से मुश्किल वक्त में मदद करेगा।

मां बाप के त्याग की कद्र करो…

मैं एक बात जरूर कहना चाहती हूं कि आज कल की जनरेशन अपने मां-बाप के त्याग का उतना कद्र नहीं करती है। जितना उन्हें करना चाहिए। क्योंकि मां-बाप अपने बच्चों के लिए अपने जीवन की सभी खुशियां त्याग देते हैं। वे कभी यह नहीं जताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में किन किन चीजों का त्याग किया है। मां कभी नहीं कहती है कि उसे अपने बच्चे के लिए कितना कष्ट उठाया है। इसके बावजूद अक्सर बच्चे मां-बाप की बातों का उल्टा जवाब देते हैं। अपने ही पेरेंट्स के साथ ठिक से पेश नहीं आते उनकी बातों का सही सही जवाब नहीं देते हैं। इसिलए मैं कहना चाहती हूं कि मां जैसी भी हो उसका सम्मान करना चाहिए। चाहे मां अनपढ़ हो या कैसी भी दिखती हो। बच्चे को हमेशा मां का आदर व सम्मान करना चाहिए चाहे वे कितने भी बड़े क्यों न हो जायें। बच्चों को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मां एक जड़ और पिता पेड़ है। पिता जो कुछ भी बच्चे को देता है। वह एक फल की तरह दिखाई देता है, परंतु उस पेड़ को स्वाभिमान के साथ खड़ा रखने और मजबूती देने का काम मां करती है।

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