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MUMBAI: मिर्गी के कलंक से मिलेगी मुक्ति

मुंबई। मुंबई की एपिलेप्सी फाउंडेशन(Epilepsy foundation) ने मिर्गी के कलंक से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से कमाल की युक्ति लगाई है। समाज में बीमारी को लेकर फैली मिथक धारणाओं को दूर करने के लिए अवेयरनेश अभियान चलाया जा रहा है। इसी के तहत कल आयोजित हुए टाटा मुंबई मैराथन २०२३ में फाउंडेशन की तरफ से २४० लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें से १८० मरीज का समावेश है। यह जानकारी देते हुए फाउंडेशन के डॉ. निर्मल सूर्या ने कहा कि इस साल का विषय फाइट स्टिग्मा विद एपिलेप्सी है।

आज कल मिर्गी का दौरा एक आम समस्या है। आंकड़ों की मानें तो देश में १.३० करोड़ की आबादी प्रभावित है। ये बच्चों में सबसे आम मस्तिष्क विकारों में से एक है। हालांकि ज्यादातर लोगों में दौरे को मॉर्डन मेडिसिन से ठीक किया जा सकता है। लेकिन लगभग 20 प्रतिशत रोगियों पर किसी भी तरह की दवा का कोई असर नहीं होता है। इसके विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि इन मामलों में इसका कारण क्षतिग्रस्त या असामान्य ब्रेन टिशू के पैच हो सकते हैं जिन्हें कॉर्टिकल डेवलपमेंट की विकृतियां (एमसीडी) के रूप में जाना जाता है। दिमाग में किसी तरह का पैच होने के कारण मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। हालांकि सर्जरी से ब्रेन के पैच को हटाकर मिर्गी को ठीक किया जा सकता है।

पांच करोड़ लोग मिर्गी के शिकार

एपिलेस्पी के विशेषज्ञ व फाउंडेशन के डॉ. निर्मल सूर्या ने बताया कि देश में १.३० करोड़ और दुनिया में ५ करोड़ लोग एपिलेप्सी से प्रभावित हैं। यदि शीघ्र निदान किया जाए, तो मिर्गी का इलाज किया जा सकता है। वहीं इस बीमारी को लेकर फाउंडेशन की तरफ से नौ जनवरी से १३ फरवरी तक अवेयरनेश अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मिर्गी से पीड़ित लोगों के प्रति धावक का प्रत्येक कदम मिर्गी के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करेगा। इसके तहत एपिलेप्सी फाउंडेशन और इंटरनेशनल ब्यूरो फॉर एपिलेप्सी ने टाटा मुंबई मैराथन 2023 में भाग लिया। इसमें 240 धावकों ने भाग लिया, जिसमें से एक फुल मैराथन, दो हाफ, दो 10 किमी और बाकी ड्रीम रनर में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि दौड़ में शामिल करीब 180 लोग मिर्गी से पीड़ित थे।डॉ. निर्मल सूर्या ने कहा कि मिर्गी को लेकर आज भी लोगों में कई तरह की गलत धारणाएं हैं। इस बीमारी से पीड़ित मरीज को समाज में उचित सम्मान नहीं दिया जाता है। ऐसे मरीजों की शादियां नहीं होती है, जिस कारण उनका परिवार नहीं बढ़ पाता है। इस तरह की तमाम मिथ्या धारणाओं के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए कैंपेन चलाया जा रहा है।

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