Joindia
कल्याणकाव्य-कथादेश-दुनियामुंबईराजनीति

साम-दाम-दंड-भेद कुछ भी छोड़ने के मूड में नहीं भाजपा- विश्वनाथ सचदेव

sachdev 202212030903492225 H@@IGHT 302 W@@IDTH 275

देश के मतदाताओं के मन की बात

Advertisement
जानने का दावा करने वालों का, अथवा अनुमान लगाने वालों का, मानना है कि आज की स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आम-चुनाव में भाजपा को आसानी से बढ़त मिलने की संभावना है। इस ‘आसानी से ‘का सही आकलन तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे, लेकिन यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी जिस शिद्दत के साथ चुनाव की तैयारी में लगी है उसमें किसी भी प्रकार की गफलत के लिए कोई जगह नहीं है। जीत की सारी संभावनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री समेत भाजपा का समूचा नेतृत्व जीत के लिए हर जरूरी कोशिश में लगा हुआ है। साम-दाम-दंड-भेद में से कुछ भी छोड़ने के मूड में नहीं है भाजपा का नेतृत्व। दूसरी ओर चुनाव को लेकर विपक्ष की कोशिशें अभी तो आधी-अधूरी ही दिख रही हैं।’ इंडिया ‘गठबंधन के शुरुआती दौर में यह अवश्य लगा था कि विपक्ष की कोशिशों में कुछ दम है, पर बात बनी नहीं, कोशिश कमज़ोर पड़ने लगी। सीटों का बंटवारा आसान नहीं था, यह तो सब जानते थे, पर कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों के स्वार्थ भाजपा से लड़ने के लिए ज़रूरी मज़बूत इरादों की तुलना में इतने कमजोर बन जाएंगे, यह नहीं लग रहा था। पर ऐसा हुआ। राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने राजनीतिक हितों की रक्षा करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, पर देश की वर्तमान राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि विपक्ष चुनौती को स्वीकार करने में विफल सिद्ध हो रहा है। आगामी दो महीनों में देश की राजनीति क्या करवट लेती है यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल जो स्थिति बनी है वह भाजपा के लिए चुनावी लड़ाई आसान होती दिखाई देने वाली है।यह कतई ज़रूरी नहीं है कि भाजपा के दावे सिद्ध हों ही, पर आज की तारीख में भाजपा ‘अबकी बार चार सौ पार’ का नारा दे रही है। पूरा समय चुनावी मुद्रा में रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास लगातार तेज होते जा रहे हैं। उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता दिखाई दे रहा है। चुनाव-परिणाम भाजपा के विश्वास की कसौटी पर कितने खरे उतरते हैं , अपनी ताकत पर लोकसभा की तीन सौ सीट भाजपा को मिलती हैं या नहीं, यह आने वाला कल ही बतायेगा, लेकिन इस संदर्भ में इस बात पर गौर किया जाना ज़रूरी है कि जनतंत्र की सफलता और सार्थकता एक मजबूत विपक्ष पर ही निर्भर करती है। दुर्भाग्य से, आज विपक्ष कमज़ोर होता दिख रहा है। जनतंत्र की सफलता के लिए सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष में एक संतुलन होना ज़रूरी है। संसद में भारी-भरकम बहुमत वाली सरकार के निरंकुश बनने के खतरे बढ़ जाते हैं और विपक्ष का बहुत कमज़ोर होना भी जनतंत्र की सफलता के लिए खतरा ही होता है। आज़ादी प्राप्त करने के बाद के दो-एक शुरुआती चुनावों में हमारी संसद में विपक्ष काफी कमज़ोर था। तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पार्टी कांग्रेस के सांसदों से आगाह किया था कि विपक्ष की भूमिका भी उन्हें ही निभानी होगी। विपक्ष का काम सरकार के कामकाज पर नजर रखने का होता है। सरकार की निरंतर चौकसी ही जनतंत्र की सफलता की गारंटी होती है। यह चौकीदारी प्रभावशाली ढंग से हो सके, इसके लिए ही सांसद और विधानसभाओं में सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष में एक संतुलन की अपेक्षा की जाती है। सरकार और विपक्ष दोनों की मज़बूती ही जनतंत्र को मज़बूत बनाती है। दुर्भाग्य से आज जो स्थिति है वह इस संदर्भ में भरोसा दिलाने वाली नहीं है।भाजपा अपनी ताकत पर 375 सीटें जीतने का दावा कर रही है। इसके लिए वह जिस तरह की कोशिशों में लगी है, वह भी स्वस्थ जनतंत्र की दृष्टि से भरोसा नहीं दिलातीं। हर रोज इस आशय के समाचार मिल रहे हैं कि फलां पार्टी का फलां बड़ा नेता भाजपा में शामिल हो गया है। विपक्ष के नेताओं को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा को आज इस बात की भी चिंता नहीं है कि उसका दामन थामने वाले की छवि कैसी है। कल तक जिसे वह घोर भ्रष्टाचारी बता रही थी, वही व्यक्ति उसके लिए स्वीकार्य बन रहा है। न भाजपा में शामिल होने वालों को इस बात की शर्म आ रही है कि कल तक वह भाजपा को कोस रहे थे और न ही भाजपा को इस बात की कोई चिंता है कि कल तक वह ऐसे नेताओं को ग़लत साबित करने में एड़ी-चोटी का पसीना बहा रही थी। स्पष्ट है हमारी राजनीति में आज नैतिकता जैसी किसी चीज के लिए कोई जगह नहीं है। मान लिया गया है की राजनीति में सब कुछ जायज है— और दुर्भाग्य यह भी है कि ऐसा मानने वालों में सत्तारूढ़ भाजपा कहीं अधिक सक्रिय दिखाई दे रही है।सन 2014 में जब भाजपा सत्ता में आयी थी तो उसका सबसे बड़ा नारा कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का था। कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय बताती थी भाजपा। आज भाजपा के लिए समूचा विपक्ष भ्रष्टाचारी है। भाजपा- नेताओं के बयान स्पष्ट बता रहे हैं कि अब वह विपक्ष विहीन भारत चाहते हैं। भाजपा के लिए ऐसी स्थिति कितनी ही सुखद क्यों न हो जनतंत्र के लिए एक खतरे की घंटी ही है। जनतंत्र को मज़बूत सरकार भी चाहिए और मज़बूत विपक्ष भी।स्वाभाविक है सत्तारूढ़ पक्ष मज़बूत विपक्ष नहीं चाहेगा, पर ज़रूरी है कि विपक्ष स्वयं को मजबूत बनाये। हमारे देश की स्थिति को देखते हुए आज कांग्रेस को स्वयं को मजबूत बनाने की ईमानदार कोशिश करनी चाहिए। भाजपा के 10 साल के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस को यह काम करना चाहिए था। क्योंकि देश का और कोई राजनीतिक दल पूरे भारत में भाजपा की टक्कर में खड़ा होने वाला नहीं है। दुर्भाग्य से कांग्रेस ने यह कार्य नहीं किया। इस संदर्भ में भाजपा की नीति कांग्रेस पर लगातार चोट करने वाली रही और उसके लिए यह सही भी था। पर कांग्रेस अपने लिए ऐसी कोई ठोस नीति नहीं अपना पायी। होना तो यह चाहिए था कि इस दौरान कांग्रेस उन आरोपों से मुक्त होने का प्रयास करती जो उस पर लगाए जा रहे थे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टे, कांग्रेस का बिखराव जारी रहा। जनतंत्र के लिए यह खतरनाक स्थिति है। अब यह देश के मतदाता पर निर्भर करता है कि जनतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए किस तरह एक स्वस्थ और संतुलित जनतंत्र को साकार करता है। राजनीति की नकेल जागरूक मतदाता के हाथ में होनी चाहिए, राजनेताओं के हाथ में नहीं—यही सफल और सार्थक जनतंत्र की कसौटी है।

Advertisement

Related posts

Environmentally friendly Bappa will be at Ganeshotsav in Mumbai: मुंबई में गणेशोत्सव में होंगे पर्यावरणपूरक बप्पा, पीओपी के मूर्तियों पर सख्त पाबंदी

Deepak dubey

पाकिस्तान इंग्लैंड मैच पर सट्टा लगाते चार गिरफ्तार

Deepak dubey

‘ वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में भारत से एक यंग ग्लोबल लीडर होने पर गर्व है!’ : भूमि पेडनेकर

Deepak dubey

Leave a Comment