जो इंडिया / मुंबई: मुंबई की जीवनरेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेनों ( local train

हादसे से उपजा सवाल – बंद दरवाज़े हों या खुला खतरा?
मुंब्रा हादसे में मारे गए यात्रियों की मौत ने फिर एक बार उस पुरानी बहस को जिंदा कर दिया है – क्या लोकल ट्रेनों में दरवाज़े बंद होने चाहिए?
रेलवे प्रवासी संघ से जुड़े राजेश पंड्या कहते हैं, “अगर दरवाजे स्वचालित और बंद होते, तो ये लोग ट्रेन से गिरते ही नहीं। जान बच सकती थी।” वे बंद दरवाजों के समर्थन में रेलवे से ठोस कदम उठाने की मांग करते हैं।
दूसरी ओर कुछ यात्री जैसे कि कल्याण निवासी तेवर सिंह और अर्चना पाल इसे अव्यवहारिक मानते हैं। उनका तर्क है कि “नॉन-एसी डिब्बों में बंद दरवाजे घुटन का कारण बनेंगे। खासकर गर्मियों में और भीड़भाड़ के समय सांस लेना मुश्किल हो जाएगा।”

फूटबोर्ड की मजबूरी, भीड़ का प्रेशर
मुंबई में हजारों यात्री हर दिन समय की पाबंदी के चलते ट्रेन के फूटबोर्ड पर लटक कर यात्रा करने को मजबूर होते हैं। यूसुफ (कलवा निवासी) बताते हैं, “ट्रेनें लेट होती हैं, भीड़ बढ़ती है, और फिर लोग लटककर यात्रा करते हैं। बंद दरवाजे इन लोगों के लिए एक झटका होगा, लेकिन ज़रूरी भी है।”
सच यह है कि लोकल ट्रेन का मौजूदा ढांचा ऐसी अत्यधिक भीड़ को सुरक्षित संभालने में नाकाम है। अगर दरवाजे बंद किए गए तो फूटबोर्ड पर यात्रा करना असंभव हो जाएगा, जिससे यात्री अन्य ट्रेनों में भीड़ बढ़ाएंगे – जो किसी और हादसे को न्योता दे सकती है।
रेलवे की योजना: नया डिजाइन, नई सोच
हादसे के बाद जागे रेलवे प्रशासन ने एक नई पहल की घोषणा की है। रेलवे अधिकारियों ने कहा कि वर्ष 2025 के अंत तक एक नई डिज़ाइन वाली नॉन-एसी लोकल ट्रेन तैयार की जाएगी जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं होंगी:
स्वचालित बंद दरवाज़े
दरवाजों में लूवर्स (हवादार पट्टियां)
कोच की छत पर वेंटिलेशन यूनिट्स
कोचों के बीच वेस्टीब्यूल्स (आंतरिक लिंक)
इन विशेषताओं के माध्यम से रेलवे यात्रियों को सुरक्षा और वेंटिलेशन दोनों प्रदान करना चाहता है। अधिकारियों के अनुसार, यह ट्रेन नवंबर 2025 तक तैयार हो जाएगी और जनवरी 2026 से इसे सेवा में लाया जाएगा।
प्रशासन पर सवाल, कार्रवाई कब?
स्थानीय नागरिकों और यात्रियों का कहना है कि जब तक रेलवे सिर्फ घोषणाएं करता रहेगा और ज़मीनी हकीकत नहीं बदलेगी, हादसे होते रहेंगे। रेलवे विशेषज्ञ अनिल तिवारी कहते हैं, “मुंबई लोकल ट्रेनें अब भी पुराने ढांचे पर चल रही हैं, जबकि सवारियाँ दोगुनी हो चुकी हैं। बिना नई सोच और टेक्नोलॉजी के हम इसी तरह जान गंवाते रहेंगे।”