जब देश ने पुकारा: शादी और जन्मदिन छोड़ वर्दी में लौटे वीर, पत्नी ने कहा – मेरा सिंदूर देश के नाम
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई:
जब सरहद पर खतरा मंडराता है, तब सैनिकों के लिए घर, परिवार, शादी या उत्सव सब पीछे छूट जाते हैं। हाल ही में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच तीन वीर सैनिकों की ऐसी कहानियाँ सामने आई हैं, जिन्होंने देशभक्ति की मिसाल पेश की है। किसी ने शादी की रश्में अधूरी छोड़ वर्दी पहन ली, तो किसी ने बेटी का जन्मदिन बीच में छोड़ा। एक सैनिक की पत्नी ने तो नम आंखों से विदाई देते हुए कहा – “मेरा सिंदूर मेरे देश के नाम है।”
तीन दिन की दुल्हन ने दी विदाई, कहा – देश पहले
सातारा, महाराष्ट्र के प्रसाद काले की शादी 1 मई को वैष्णवी से हुई थी। विवाह के अगले दिन घर में पूजा चल रही थी, तभी उन्हें सेना से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत तुरंत अमृतसर यूनिट में रिपोर्ट करने का आदेश मिला। हाथों की मेंहदी और शरीर पर हल्दी के रंग अभी सूखे भी नहीं थे, लेकिन प्रसाद ने तुरंत वर्दी पहनी और चल पड़े। उनकी पत्नी वैष्णवी ने गर्व से कहा – “देश के लिए यह विदाई मेरा सौभाग्य है।” यह नवविवाहित जोड़ा आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है।
चार घंटे में बेटी का जन्मदिन समेट सीमा पर पहुंचे
जलगांव के शांताराम सोनवणे, बीएसएफ में तैनात हैं। वे अपनी बेटी के जन्मदिन पर छुट्टी लेकर घर आए थे, लेकिन जैसे ही सीमा पर तनाव बढ़ा, उन्हें चार घंटे में ड्यूटी पर लौटने का आदेश मिला। उन्होंने बेटी की मुस्कान को सीने से लगाया और सीमा की ओर रवाना हो गए। उनका यह त्याग पूरे गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है।
“मेरा सिंदूर मेरे देश के नाम है” – यामिनी
जलगांव के मनोज पाटील की शादी 5 मई को यामिनी से हुई थी। शादी के तीन दिन बाद ही उन्हें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत वापस बुला लिया गया। रेलवे स्टेशन पर विदा के वक्त यामिनी ने कहा – “मेरा सिंदूर मेरे देश के नाम है।” यह वाक्य सुनकर वहां मौजूद हर किसी की आंखें भर आईं।
देश पहले, बाकी सब बाद में
इन तीनों सैनिकों और उनके परिवारों की कहानियां साबित करती हैं कि सैनिक सिर्फ सरहद की रक्षा नहीं करते, बल्कि अपने रिश्तों, भावनाओं और सपनों को भी देश के नाम कर देते हैं। और उनके परिवार – चाहे वो एक नई दुल्हन हो या मासूम बेटी – उतने ही बहादुर होते हैं।
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