जो इंडिया / मुंबई:
हाल ही में राज्य सरकार ने पहली से चौथी कक्षा के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य बनाने वाले विवादित त्रिभाषा सूत्र (GR) को रद्द कर दिया। इस फैसले का दोनों ठाकरे बंधुओं ने विरोध किया था और 5 जुलाई को एक संयुक्त मार्च का ऐलान भी किया गया था। माना जा रहा था कि यह मार्च केवल भाषा के मुद्दे पर नहीं, बल्कि ठाकरे बंधुओं की वर्षों बाद एकता का प्रतीक भी बन सकता था।
सोशल मीडिया पर ‘उद्धवराज’ की लहर
नेटिज़न्स ने इस मुद्दे पर भावनात्मक प्रतिक्रियाएं दीं। “उद्धव और राज अगर साथ आते हैं, तो यह सिर्फ मुंबई के लिए नहीं, मराठी अस्मिता के पुनर्जागरण के लिए एक नई सुबह होगी,” – ऐसी प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो गई हैं।
कुछ यूज़र्स ने लिखा, “जब दो शेर मिलते हैं, तो जंगल कांपता है। ठाकरे बंधुओं का साथ आना वक्त की मांग है।”
दूसरे ने कहा, “यह सिर्फ मार्च नहीं, मराठी स्वाभिमान का आंदोलन हो सकता है।”
5 जुलाई का कार्यक्रम बना राजनीतिक सेंटरपॉइंट
राज्य सरकार द्वारा जीआर रद्द करने के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या ठाकरे बंधु अब भी 5 जुलाई को विजय जुलूस निकालेंगे?
उद्धव ठाकरे ने संकेत दिए हैं कि वे मनसे, कांग्रेस, एनसीपी और अन्य संगठनों से चर्चा कर इस पर निर्णय लेंगे।
वहीं राज ठाकरे ने अपने नेताओं की आपात बैठक बुलाई है जिसमें तय किया जाएगा कि मनसे इस संयुक्त मार्च में भाग लेगी या नहीं।
क्या होगी राजनीति की दिशा?
यदि ठाकरे बंधु एक मंच पर आते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह महाविकास अघाड़ी और मनसे के समीकरणों को नए आयाम दे सकता है और 2029 तक के विधानसभा चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।