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Railway vs Municipal Corporation: पीने के पानी की पाइपलाइन पर 395 करोड़ की ‘राइट ऑफ वे’ फीस, RTI कार्यकर्ता ने उठाए सवाल

statue of sir pherozeshah

जो इंडिया / मुंबई: मुंबई के लाखों नागरिकों को पानी पहुंचाने वाली पाइपलाइन (pipeline

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)अब विवाद का केंद्र बन गई है। पश्चिम रेलवे (western railway)ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) से मांग की है कि वह रेलवे की जमीन से गुजरने वाली भूमिगत जल पाइपलाइनों के लिए ₹395 करोड़ का ‘राइट ऑफ वे’ लाइसेंस शुल्क चुकाए। यह शुल्क 10 वर्षों की अवधि के लिए अग्रिम रूप से मांगा गया है, जिसे लेकर शहर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता समीर झवेरी द्वारा दाखिल सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन से प्राप्त हुई है। झवेरी का कहना है कि रेलवे की यह मांग जनकल्याण और सरकारी सहयोग की भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “पानी जैसी मूलभूत और जीवनदायिनी सेवा को राजस्व का स्रोत बनाकर रेलवे संवेदनहीनता दिखा रहा है।”

India Railways Reuters
Drinking Water Supply Mumbai,

झवेरी के अनुसार, यह पाइपलाइन मुंबई की जल आपूर्ति व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है, जो लाखों लोगों तक फिल्टर किया हुआ पीने योग्य पानी पहुंचाती है। इसके बावजूद, रेलवे ने मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर भूमि शुल्क की गणना की है, जिससे मनपा के अधिकारियों और नीति विशेषज्ञों में हैरानी है।

मनपा की ओर से भी बताया गया है कि वे सिर्फ पांच पैसे प्रति लीटर की दर से फिल्टर किया हुआ पीने योग्य पानी नागरिकों को मुहैया कराते हैं — जो कि देश की सबसे कम दरों में से एक है। ऐसे में यदि मनपा को इस तरह का भारी भरकम शुल्क देना पड़ेगा, तो इसका असर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आम नागरिकों की जेब पर पड़ सकता है।

समीर झवेरी ने इस मामले को केंद्र सरकार और रेलवे मंत्रालय के संज्ञान में लाते हुए मांग की है कि या तो इस शुल्क को पूरी तरह माफ किया जाए या भारी रियायत दी जाए, ताकि जनता को पानी जैसी बुनियादी सेवा बिना किसी बाधा के मिलती रहे।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के शुल्क से भविष्य में अन्य शहरों में भी इसी तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, जहां दो सरकारी संस्थाएं एक-दूसरे पर शुल्क थोप कर अंततः आम आदमी को ही नुकसान पहुंचा सकती हैं।

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