जो इंडिया / नई दिल्ली/पटना। (Rahul Gandhi’s new allegation) कांग्रेस नेता और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने “मतचोरी”
क्या कहा राहुल गांधी ने?
बिहार में हुई सभाओं में राहुल गांधी ने कहा कि “पिछले आम चुनाव के नतीजे मनमाफ़िक ढंग से बदले गए” और जनता के मत का सम्मान नहीं हुआ। उन्होंने मतदाता सूची और मतगणना प्रक्रियाओं में गड़बड़ी का आरोप दोहराते हुए इसे “लोगतंत्र पर हमला” बताया। बिहार में उन्होंने जनता से अपील की कि वे ऐसी “साज़िशों” के खिलाफ खड़े हों और आने वाले चुनावों में चौकन्ने रहें।
‘वोटर अधिकार यात्रा’ और अभियान
राहुल गांधी ने बिहार में “वोटर अधिकार यात्रा” का शुभारंभ किया, जिसे कांग्रेस ने व्यापक “Vote Chori” अभियान से जोड़ा है। पार्टी का कहना है कि इससे मतदाता सूची की पारदर्शिता, डुप्लीकेशन और संदिग्ध प्रविष्टियों के मुद्दे उजागर होंगे। यह यात्रा राज्य भर में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर मतदाताओं से सीधे संवाद का प्रयास है।
EC का कड़ा पलटवार: 7 दिन में शपथपत्र या माफ़ी
राहुल के आरोपों पर मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने सख़्त रुख दिखाते हुए कहा कि “वोट चोरी” जैसे शब्द लोकतांत्रिक संस्थाओं का अपमान हैं। आयोग ने राहुल गांधी से कहा है कि 7 दिनों के भीतर शपथपत्र देकर अपने आरोपों को प्रमाणित करें, अन्यथा राष्ट्र से माफ़ी माँगे। आयोग का कहना है कि बिहार में मतदाता सूची के Special Intensive Revision (SIR) को पूरी पारदर्शिता से चलाया जा रहा है।
मामला कैसे भड़का?
कांग्रेस ने हाल में कई उदाहरणों का हवाला देकर डुप्लिकेट/फर्जी प्रविष्टियों और “डबल वोटिंग” जैसी आशंकाएँ उठाईं। सोशल मीडिया, प्रेस कॉन्फ़्रेंस और रैलियों के जरिए पार्टी ने इसे जन अभियान का रूप दिया। इसके जवाब में आयोग ने कहा कि अब तक दिए गए उदाहरण प्रमाणित नहीं हैं; नाम/वार्ड/बूथ-स्तरीय तथ्य उपलब्ध कराए बिना इस तरह के आरोप “असंवैधानिक भाषा” का इस्तेमाल करके जनता को गुमराह करते हैं।
संसद व सियासत पर असर
मानसून सत्र के दौरान सरकार–विपक्ष के टकराव में “वोट चोरी” विवाद केंद्रीय मुद्दा बन गया। विपक्षी INDIA गठबंधन के सांसदों ने बिहार SIR और चुनावी पारदर्शिता पर जोरदार विरोध दर्ज कराया। दूसरी ओर, सत्ता पक्ष ने विपक्ष पर बहसबंदी और सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के आरोप लगाए।
विपक्ष की आगे की रणनीति
कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने संकेत दिए हैं कि अगर आयोग अपनी चेतावनियों पर कायम रहता है और विपक्ष के सवालों को “नज़रअंदाज़” करता है, तो वे संवैधानिक दायरे में कठोर संसदीय कदम उठाने से नहीं हिचकेंगे—जिसमें आयोग के शीर्ष पदाधिकारियों के खिलाफ प्रस्ताव जैसे विकल्पों पर चर्चा भी शामिल बताई जा रही है।