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Mumbai Metro Aqua Line 3: मीठी नदी के नीचे दौड़ी मेट्रो एक्वा लाइन-3, लेकिन देरी और बढ़ी लागत पर प्रशासन फेल

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जो इंडिया / मुंबई 

मुंबई मेट्रो की एक्वा लाइन-3 (Mumbai Metro’s Aqua Line-3) पर मीठी नदी के नीचे पहली बार ट्रायल रन सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। यह ट्रायल कोटक बीकेसी से अचार्य अत्रे चौक (Kotak BKC to Acharya Atre Chowk) तक किया गया, जो 9.77 किलोमीटर लंबा खंड है और इसमें छह स्टेशन शामिल हैं—धारावी, सीतलादेवी, दादर, सिद्धिविनायक, वर्ली और अचार्य अत्रे चौक। यह मेट्रो लाइन 39 मिनट में जोगेश्वरी-विक्रोली लिंक रोड से अचार्य अत्रे चौक तक यात्रा पूरी करेगी। हालांकि, परियोजना में कई प्रशासनिक कमियाँ उजागर हुई हैं।

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निर्माण में देरी और लागत बढ़ी

मेट्रो लाइन-3 का निर्माण कार्य लंबे समय से अटका हुआ था। इसे 2021 तक पूरा करने की योजना थी, लेकिन अब इसे 2025 तक बढ़ा दिया गया है। इस देरी के कारण परियोजना की लागत अनुमान से काफी अधिक हो चुकी है।

मीठी नदी के नीचे मेट्रो: सुरक्षा पर सवाल

मीठी नदी मानसून के दौरान जलभराव के लिए जानी जाती है। इस नदी के नीचे से मेट्रो लाइन निकालने के लिए 500 मीटर लंबे सक्रिय चैनल के साथ 2 किलोमीटर का हिस्सा विस्तारित जल निकाय के नीचे से गुजरता है। प्रशासन ने वाटरप्रूफिंग के लिए विशेष गास्केट और हाइड्रोफिलिक सीलिंग तकनीक अपनाने का दावा किया है, लेकिन मानसून के दौरान इसकी असली परीक्षा होगी।

निर्माण तकनीक पर संदेह

मेट्रो का यह सेक्शन 9.57 मीटर मीठी नदी के तल के नीचे स्थित है, जहां सुरंग निर्माण के लिए विशेष टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) गोदावरी-3 और गोदावरी-4 का उपयोग किया गया। प्रशासन ने न्यू ऑस्ट्रेलियन टनलिंग मेथड अपनाने की बात कही, लेकिन इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठे हैं। परियोजना से जुड़ी कई तकनीकी जानकारियाँ आम जनता और विशेषज्ञों को स्पष्ट रूप से नहीं दी गईं।

स्थानीय जनता और व्यापारियों को हुआ नुकसान

निर्माण कार्य के कारण वर्षों तक धारावी, बीकेसी और वर्ली के इलाकों में यातायात बाधित रहा। सड़कों की खुदाई और मलबे के कारण स्थानीय निवासियों को परेशानी झेलनी पड़ी। छोटे व्यापारियों को आर्थिक नुकसान हुआ, लेकिन प्रशासन ने जनता को समय रहते कोई राहत नहीं दी।

क्या मिलेगी राहत?

अब जब मीठी नदी के नीचे ट्रायल सफल रहा है, तो उम्मीद की जा रही है कि परियोजना 2025 तक पूरी होगी। लेकिन सवाल यह है कि देरी और लागत बढ़ने की जवाबदेही कौन लेगा? क्या मानसून में यह लाइन सुरक्षित रहेगी? और क्या प्रशासन भविष्य में ऐसी परियोजनाओं में पारदर्शिता लाएगा?

 

 

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