मुंबई। दुर्लभ कूल्हे में कैंसर ट्यूमर (cancer tumor)से जूझ रहा 13 वर्षीय किशोर भीषण दर्द से गुजर रहा था। इस जानलेवा बीमारी से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टरों ने युक्ति लगाई और सीटी स्कैन (CT Scan)का उपयोग से न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया(minimally invasive procedure)कर इस कैंसर के इस ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाल दिया। चिकित्सकों(Physicians)के अनुसार कैंसर का यह प्रकार किशोरों में बहुत ही दुर्लभ है। घाटकोपर निवासी आयुष शिंगोटे के बाएं पैर में अचानक तेज दर्द होने लगा। इसके बाद उसका स्थानीय डॉक्टरों से इलाज कराया जाने लगा। लेकिन हालत में सुधार नहीं दिखी। समय बीतने के साथ ही दर्द असहनीय होता जा रहा था। उसे दैनिक कार्यों को करने के लिए परिवार के सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ा। बच्चे की हालत बिगड़ती देख माता-पिता ने उसे तुरंत जायनोवा शाल्बी अस्पताल में भर्ती करा दिया। यहां हुए मेडिकल जांच में बच्चे के बाएं पैर की जांघ में कैंसर का ट्यूमर निकला। ऐसी स्थिति में ट्यूमर को तत्काल हटाने की जरूरत होती है। इसके बाद कूल्हे और घुटने के सर्जन डॉ. श्रीसनाथ राव, बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. चिंतन दोषी, रेडियोलॉजिस्ट डॉ. शिल्पा जोशी, एनेस्थेटिस्ट डॉ. वैशाली शेंडे आदि डॉक्टरों की टीम ने सीटी स्कैन की मदद से न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया के माध्यम से कैंसर के ट्यूमर को हटा दिया। कूल्हे और घुटने के विशेषज्ञ सर्जन डॉ. श्रीसनाथ राव ने कहा कि इस सर्जरी से बच्चे को दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया है। साथ ही मरीज के सेहत में सुधार देखकर उसे डिस्जार्च दिया गया हैं।
यह हड्डी का है सौम्य ट्यूमर
डॉ.राव ने कहा कि ओस्टियोइड ओस्टियोमा हड्डी का एक सौम्य ट्यूमर है, जो लंबे समय तक बेहद दर्दनाक होता है। इससे मुक्ति पाने के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। पुरानी पारंपरिक पद्धति में पैर में पांच मिमी का चीरा लगाकर सर्जरी की जाती है। लेकिन इससे हड्डी कमजोर हो सकती है और कई बीमारियां हो सकती हैं। दुनिया भर में लगभग 10 फीसदी लोग इसका शिकार होते हैं।
कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. चिंतन दोशी ने कहा कि हड्डी का इलाज और हड्डी के हिस्से को हटाना एक पुरानी पारंपरिक विधि है। इस प्रक्रिया में हड्डी और आसपास के कोमल ऊतकों को काट दिया जाता है। लेकिन सीटी गाइडेंस में की गई प्रक्रिया से हड्डियों को कोई नुकसान नहीं होता है। इस सर्जरी के दौरान केवल एक छोटा सा चीरा लगाया जाता है। इसलिए सर्जरी के बाद मरीज जल्दी ठीक हो सकता है। इस सर्जरी की सफलता दर 95 प्रतिशत है और कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम है।