Jo india: मुंबई की भागती-दौड़ती जिंदगी में अब जंगल की चुप्पी (leopard camera collar project) भी टेक्नोलॉजी से तोड़ी जा रही है। संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में जल्द ही तेंदुए की गर्दन पर कैमरा लटकाया जाएगा। एक हाई-टेक रेडियो कॉलर, जो जंगल के अंदरूनी रहस्यों को बाहर लाएगा।
इस कैमरा-कॉलर की मदद से वैज्ञानिक उस दोहरी सुरंग परियोजना के प्रभावों का अध्ययन करेंगे, जो बोरिवली से ठाणे तक बनाई जा रही है। इसका दावा है कि यह परियोजना न केवल ट्रैफिक कम करेगी, बल्कि ईंधन और कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती लाएगी। लेकिन असली सवाल यह है। क्या यह विकास वनों के भविष्य को निगल तो नहीं रहा?
कैमरे की आंख से दिखेगा जंगल
रेडियो कॉलर में लगे कैमरे से तेंदुआ, चीतल और सांभर जैसे जानवरों की गतिविधियां रिकॉर्ड की जाएंगी। वे कब सड़क पार करते हैं, इंसानों से कैसे बचते हैं, और कैसे बदलते जंगल में खुद को ढालते हैं — सब कुछ फुटेज में कैद होगा।
7-9 महीने की निगरानी
यह निगरानी अभियान करीब 9 महीनों तक चलेगा, जिसमें वैज्ञानिक डेटा एकत्र करेंगे। हालांकि कैमरे की दिशा तय करने का अधिकार जानवर के पास नहीं होगा — सब कुछ पहले से प्रोग्राम होगा।
वन्यजीवों की ‘निगरानी लोकतंत्र’
अब सवाल यह है कि क्या विकास के नाम पर जंगल की चुप्पी को रिकॉर्ड करना ही पर्याप्त है? क्या अगली बार कोई नीतिगत मीटिंग होगी, तो तेंदुए को भी आमंत्रण मिलेगा?
तकनीक बनाम प्रकृति
प्रशासन इस परियोजना को आधुनिक भारत की ज़रूरत बता रहा है, लेकिन पर्यावरण प्रेमियों के लिए यह एक और चेतावनी है । जब जंगल न रहेंगे, तब बस रिकॉर्डिंग ही रह जाएगी।
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