भारत के दिवाला एवं शोधन अक्षमता न्यायाधिकरण (Insolvency and Bankruptcy Tribunal of India) (NCLT) से जुड़े मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन 24 नए नियुक्त सदस्य अब भी बिना पदस्थापना के घर बैठे हैं। यह देरी न्यायपालिका की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है, जिससे लंबित मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली (RTI activist Anil Galgali) ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि एनसीएलटी (NCLT) में नियुक्त नए सदस्यों की अभी तक पोस्टिंग नहीं की गई है, जिससे भारत के दिवाला कानूनों की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने इस देरी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
न्याय में देरी, विश्वास की हानि
NCLT की कार्यवाही में पहले से ही भारी देरी हो रही है। हजारों कंपनियों और निवेशकों के मामले अधर में लटके हैं। “न्याय में देरी का अर्थ है न्याय से वंचित होना,” अनिल गलगली ने कहा। यदि जल्द से जल्द इन 24 नए सदस्यों को कार्यभार नहीं सौंपा गया तो न्यायिक प्रक्रिया और धीमी हो जाएगी, जिससे भारत की दिवाला संहिता (IBC) की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठेंगे।
केस बैकलॉग से उद्योग जगत को नुकसान
एनसीएलटी में लंबित मामलों का सीधा असर भारतीय उद्योग जगत, निवेशकों और कर्मचारियों पर पड़ रहा है। कंपनियों के पुनर्गठन और परिसमापन (liquidation) से जुड़े मामलों में देरी से आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हो रही हैं। वर्तमान में NCLT में हजारों केस लंबित हैं, जिनका समाधान समय पर नहीं हो पा रहा है।
सरकार को जल्द उठाने होंगे कदम
अनिल गलगली ने सरकार से मांग की है कि नए नियुक्त 24 सदस्यों को जल्द से जल्द कार्यभार सौंपा जाए, ताकि दिवालिया मामलों की सुनवाई तेज हो और न्याय प्रक्रिया को गति मिले। यदि सरकार जल्द निर्णय नहीं लेती तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था और व्यापार जगत को नुकसान होगा।
सरकार को चाहिए कि न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार लाकर विश्वास बहाल करे और एनसीएलटी को पूर्ण क्षमता से कार्य करने की अनुमति दे। अन्यथा, यह देरी #JusticeDelayedIsJusticeDenied के सिद्धांत को और मजबूत करेगी।