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A journey of life in Mumbai local: हाईकोर्ट ने रेलवे से पूछा—”भीड़ के बीच गिरने वालों को लापरवाह कैसे कह सकते हैं?”

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जो इंडिया / मुंबई।

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मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनों में जानलेवा भीड़ की समस्या को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब सामान्य डिब्बों में पैर रखने की भी जगह नहीं होती, तो फूटबोर्ड पर खड़े यात्रियों को लापरवाह कहना अन्यायपूर्ण है।

यह टिप्पणी 13 साल पुराने एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें विरार लोकल से गिरकर मारे गए छात्र अल्पेश धोत्रे के माता-पिता ने मुआवजे की मांग की थी। रेलवे ने यह कहकर मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि अल्पेश “लापरवाही से” फूटबोर्ड पर खड़ा था और उसके पास टिकट नहीं था। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क पर नाराजगी जताते हुए रेलवे से पूछा कि जब जनरल डिब्बों में जगह ही नहीं होती, तो क्या उसे फर्स्ट क्लास या एसी कोच में चढ़ने देंगे?

न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण ने पूछा, “अगर रेलवे यात्रियों को सुरक्षित यात्रा का स्थान नहीं दे सकती, तो क्या टिकट बेचना बंद कर दे?” कोर्ट ने रेलवे की उस दलील को भी खारिज किया जिसमें कहा गया था कि छुट्टियों और वीकेंड पर भीड़ कम रहती है।

अब यह देखना होगा कि क्या कोर्ट रेलवे को जवाबदेह ठहराते हुए मुआवजा देने का आदेश देती है या नहीं। फिलहाल अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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