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Health-किडनी रोग की राजधानी बनती जा रही मुंबई, शहर में चल रहा 10 हजार मरीजों का इलाज

jonindia kedney

कोरोना महामारी के बाद से मुंबईकरों की दिनचर्या ( health) तेजी से बदली है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अन्य रोगों के साथ ही किडनी रोग ( kedney disease) के मरीज भी उसी गति से बढ़ रहे हैं। शहर में इस समय 10 हजार रोगियों का डायलिसिस चल रहा है। चिकित्सकों के मुताबिक हर पांच साल में इसमें से 20 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। दूसरी तरफ अनुमान लगाया गया है कि वह दिन दूर नहीं जब मुंबई किडनी रोग की राजधानी बन जाएगी। इसके बावजूद मनपा प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। इसी बीच सायन अस्पताल द्वारा संचालित धारावी में स्थित डायलिसिस सेंटर बंद हो गया है। इससे यहां डायलिसिस के लिए आनेवाले गरीब मरीज बेजार हो गए हैं।
उल्लेखनीय है कि कोरोना के बाद मुंबई में बदली जीवनशैली से लोग डायबिटीज, हाइपरटेंशन, मोटापा, कैंसर, दिल और किडनी जैसे गंभीर रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। अन्य बीमारियों की तरह ही मुंबई में किडनी रोग भी तेजी से पैर पसार रहा है। इसे लेकर चिकित्सक भी चिंतित हो गए हैं। मुंबई किडनी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. उमेश खन्ना ने कहा कि पूरे मुंबई और महाराष्ट्र समेत पूरे हिंदुस्थान में किडनी रोगियों की संख्या बीते कुछ सालों में बढ़ी हैं। देश में जहां दो लाख किडनी रोगी डायलिसिस पर चल रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में यह संख्या 20 हजार और मुंबई में 10 हजार है। उन्होंने यह भी कहा कि इनमें से 20 फीसदी ऐसे मरीज होते हैं, जिनकी हर पांच साल में मौत हो जाती है। इसलिए किडनी मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए मुंबई मनपा और राज्य सरकार को इन पर ध्यान देने की जरूरत है। दूसरी तरफ किडनी मरीजों की सुविधा के लिए मनपा द्वारा सायन अस्पताल के तहत संचालित धारावी के छोटा सायन अस्पताल में एक साल पहले शुरू हुआ डायलिसिस सेंटर बंद हो गया है। यह सेंटर बंद होने से आसपास के मरीजों को डायलिसिस के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए यहां के मरीजों को दूसरे सरकारी या निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है।

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मनपा अनुबंध नीति जिम्मेदार

स्थानीय समाजसेवक रमाकांत गुप्ता ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से अस्पताल सीधे तौर पर कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर रही है। डॉक्टरों, तकनीशियनों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति संविदा के आधार पर की जा रही है। अनुबंध के आधार पर नियुक्त तकनीकी कर्मचारियों का वेतन मैकेनिकल कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम है। अनुबंध के आधार पर नियुक्त तकनीशियनों को 30,000 रुपए का भुगतान किया जाता है।

एक मरीज को लगता है डायलिसिस में चार घंटे का समय

किडनी रोग के मरीज को डायलिसिस में चार घंटे लगते हैं। फिर दूसरे मरीज के लिए डायलिसिस मशीन को साफ करने और तैयार करने में चार घंटे लगते हैं। सायन अस्पताल के इस सेंटर में हर दिन 15 मरीजों का डायलिसिस होता था। लेकिन अब यहां आने वाले मरीजों को तकनीशियन न होने के कारण दूसरे अस्पतालों में जाने की सलाह दी जाती है। यहां महात्मा ज्योतिबा फुले जीवनदायी आरोग्य योजना और आयुष्मान योजना के तहत मरीज मुफ्त डायलिसिस करा रहे थे। लेकिन अब उन्हें किसी ट्रस्ट या निजी डायलिसिस सेंटर में डायलिसिस के लिए भुगतान करना होगा।

निजी सेंटरों में 1500 से 2000 रुपए होते हैं खर्च

मनपा और राज्य सरकार के अस्पतालों में अमूमन निशुल्क डायलिसिस किया जाता है। डॉ. खन्ना ने कहा कि निजी सेंटरों में प्रत्येक मरीज से 1500 से 2000 रुपए चार्ज लिया जाता है। हालांकि, बड़े निजी सेंटरों में भी विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों का मुफ्त में डायलिसिस किया जाता है। इसके अलावा कई मरीजों को अन्य संस्थाओं की मदद से 500, 600, 700 रुपए लिए जाते हैं।

मुंबई और ठाणे में हैं 87 मेजर डायलिसिस सेंटर

प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक मु्ंबई  में एसएल रहेजा फोर्टिस, नानावटी सुपर स्पेशलिटी, जसलोक हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल, फोर्टिस अस्पताल, मुलुंड, हिंदुजा अस्पताल, माहिम, सैफी अस्पताल, ग्लोबल हॉस्पिटल, लीलावती हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, ब्रीच कैंडी अस्पताल, मनपा के केईएम, सायन, कूपर, नायर, राज्य सरकार के जेजे समेत करीब 87 डायलिसिस सेंटर हैं। इन सेंटरों में दस हजार मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा है।

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